SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४४) [भाग-३८] “नन्दी”- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ............. मूलं [५६/गाथा ||८१...|| ......... पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४४] चूलिकासूत्र[१] नन्दीसूत्र मूलं एवं मलयगिरिसूरिरचिता वृत्ति: सू. ५६ प्रत सूत्राक [५६] SSACREACOCTOR TO देवलोगगमणाई सुहपरंपराओ सुकुलपञ्चायाईओ पुणवोहिलाभा अंतकिरिआओ आघवि- विपाकश्रु. जंति । विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेजा सि I दृष्टिवादेलोगा संखेजाओ निजुत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंग- परिकर्माद्य हाधिकारः ट्रयाए इक्कारसमे अंगे दो सुअक्खंधा वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखिज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति पन्नविजंति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिजति उवदंसिजंति, से एवं आया एवं नाया एवं विनाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं विवागसुयं ११ (सू. ५६) ___अथ किं तद्विपाकश्रुतं ?, विपचन विपाकः शुभाशुभकर्मपरिणाम इत्यर्थः तत्प्रतिपादकं श्रुतं विपाकश्रुतं, शेष दि.सर्वमानिगमनं पाठसिद्धं, नवरं समयेयानि पदसहस्राणीति एका कोटी चतुरशीतिलेक्षा द्वात्रिंशच सहस्राणि । GिI सकि त दिट्टिवाए, दिट्रिवाए णं सवभावपरूवणा आघविजड, से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-परिकम्मे १ सुत्ताई २ पुव्वगए ३ अणुओगे ४ चूलिआ५, से किं तं परिकम्मे?, .५७ दीप अनुक्रम [१४९] SARERatihintamatara दृष्टिवाद-अंग सूत्रस्य शास्त्रिय परिचय: प्रस्तुयते ~480~
SR No.035038
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 38 Nandisootra Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages528
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy