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________________ आगम (४२) [भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [१], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा ||४-१३|| नियुक्ति : [२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्राशमूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक ||४-१३|| दीप अनुक्रम SAHEBSITE मायरे ॥ ४॥ अकाले चरसी भिक्खू , कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि, संनिवेसं च गरिहसि ॥५॥ सइ काले चरे भिक्खू , कुज्जा पुरिसकारिअं। अलाभुत्ति न सोइजा, तवृत्ति अहिआसए ॥ ६॥ तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्टाए समागया । तं उजुअं न गच्छिज्जा, जयमेव परकमे ॥ ७ ॥ गोअरग्गपविट्ठो अ, न निसीइज कस्थई । कहं च न पबंधिज्जा, चिट्टित्ता ण व संजए ॥ ८ ॥ अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वावि संजए । अवलंबिआ न चिट्ठिज्जा, गोअरग्गगओ मुणी ॥९॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं । उवसंकमंतं भत्तट्ठा, पाणटाए व संजए ॥१०॥ तमइकमित्तु न पविसे, नवि चिट्टे चक्खुगोअरे । एर्गतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्रिज संजय ॥ ११॥ वणीमगस्स वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा। अप्पत्तिअं सिआ हुजा, लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ १२॥ पडिसेहिए व दिन्ने वा, तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंकमिज भत्तहा, पाणट्ठाए व संजए ॥ १३॥ [१७९ -१८८] JanEducatalil ~376~
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
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