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________________ आगम (४२) [भाग-३४] “दशवैकालिक"-मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा ||८७-९६|| नियुक्ति: [२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्राशमूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक ||८७-९६|| दीप अनुक्रम [१६२-१७१] SACROSCORT मणे चेव, भत्तपाणे व संजए ॥ ८९॥ उजुप्पन्नो अणुव्विग्गो, अव्वक्खित्तेण चेअसा । आलोए गुरुसगासे, जं जहा गहिरं भवे ॥ ९ ॥न सम्ममालोइअं हुजा, पुचि पच्छा व जं कडं । पुणो पडिक्कमे तस्स, वोसट्टो चिंतए इमं ॥ ९१ ॥ अहो जिणेहिं असावज्जा, वित्ती साहण देसिआ। मुक्खसाहणहे उस्स, साहुदेहस्स धारणा ॥९२॥ णमुक्कारेण पारित्ता, करिता जिणसंथवं । सज्झायं पटुवित्ता णं, वीसमेज खणं मुणी ॥ ९३ ॥ वीसमंतो इमं चिंते, हियम, लाभमस्सिओ। जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ ॥९४॥ साहवो तो चिअत्तेणं, निमंतिज जहक्कम । जइ तत्थ केइ इच्छिज्जा, तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ ९५ ॥ अह कोई न इच्छिज्जा, तओ भुंजिज्ज एक्कओ। आलोए भायणे साहू, जयं अप्परिसाडियं ॥ ९६ ॥ वसतिमधिकृत्य भोजनविधिमाह-'सिआ यत्ति सूत्रं, 'स्थात् कदाचित् तदन्यकारणाभावे सति भिक्षुरिच्छेत् ‘शय्यां वसतिमागम्य परिभोक्तुं, तत्रायं विधिः-सह पिण्डपातेन-विशुद्धसमुदानेनागम्य, वसति ~368~
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
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