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________________ आगम (४२) [भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा ||८२-८६|| नियुक्ति: [२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्राशमूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति: - प्रत - सूत्रांक ||८२ -- -८६|| -- SSAISASSACREA -% 2 दीप माओ अप्पाणमेवे'त्यादि भावनयेति सूत्रार्थः ॥ ८॥ अस्यैव विधिमाह-एगतंति सूत्रं, एकान्तम् 'अवक्रम्य' गत्वा 'अचित्तं' दग्धदेशादि प्रत्युपेक्ष्य चक्षुषा प्रमृज्य रजोहरणेन स्थण्डिलमिति गम्यते 'यतम्। अत्वरित प्रतिष्ठापयेद्विधिना निर्वाक्यपूर्व व्युत्सृजेत् । प्रतिष्ठाप्य वसतिमागतः प्रतिक्रामेदीर्यापथिकाम् । दाएतच बहिरागतनियमकरणसिद्धं प्रतिक्रमणमवहिरपि प्रतिष्ठाप्य प्रतिक्रमणनियमज्ञापनार्थमिति सूत्रार्थः॥८॥ सिआ अ गोयरग्गगओ, इच्छिज्जा परिभुत्तुअं(भुंजिउं)। कुटुगं भित्तिमूलं वा, पडिलेहिताण फासुअं ॥ ८२ ॥ अणुन्नवित्तु मेहावी, पडिच्छन्नंमि संवुडे । हत्थगं संपमज्जित्ता, तत्थ भुंजिज्ज संजए ॥ ८३॥ तत्थ से भुंजमाणस्स, अट्रिअं कंटओ सिआ। तणकटुसकर बावि, अन्नं वावि तहाविहं ॥ ८४ ॥ तं उक्खिवित्तु न निक्खिवें, आसपण न छड्डए । हत्थेण तं गहेऊण, एगतमवक्कमे ॥ ८५॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पडिलेहिआ। जयं परिदृविज्जा, परिटुप्प पडिक्कमे ॥ ८६ ॥ एवमन्नपानग्रहणविधिमभिधाय भोजनविधिमाह-सिआ अत्ति सूत्रं, 'स्यात्' कदाचिद् 'गोचराग्रगतो' ग्रामान्तरं भिक्षां प्रविष्ट इच्छेत्परिभोक्तुं पानादि पिपासाद्यभिभूतः सन , तत्र साधुवसत्यभावे 'कोष्टक' 0-0-3 -0- अनुक्रम [१५७-१६१] 20-% प्रतिक्रमण व परिष्ठापन संबंधी उपदेश: ~366~
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
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