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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ----------------------- ------- मूलं [३९-४०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३९-४० दीप अनुक्रम [५२-५३] श्रीजम्यू-इन पौनरुक्त्यं भावनीयमिति । अथ तत्कालीना मनुजास्तादृशं भरतं दृष्ट्वा यत् करिष्यति तदाह २वक्षस्कारे द्वीपशा- तए ते मणुआ भरहं वासं परूढरुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितणपधयहरिभओसहीयं उवचिअतयपत्तपबालपाहवंकुर पुष्फफलसमुइ मांसवर्जनन्तिचन्द्री- सुहोवभोग जायं २ चावि पासिहिति पासित्ता विलहितो गिद्धाइस्संति णिवाइत्ता हतुहा अण्णमणं सहाविस्संति २ ता एवं व्यवस्था सु. या वृत्तिः वदिस्संति-जाते पं. देवाणुप्पिा ! भरहे वासे परूढाक्सगुच्छगुम्मलयवल्लितणपवयह रिअजाब सुहोवभोगे, तं जे ण देवाणुप्पिआ! |३९ शेषो॥१७५। अम्हं केइ अजप्पभिइ असुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ से ण अणेगाहिं छायाहिं वजणिज्जेत्तिकट्ट संठिई ठवेस्संति २ त्ता सर्पिणीवभरहे वासे सुहसुहेणं अभिरममाणा २ विह रिस्संति (सूत्र ३९) तीसे गं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोआरे पणनं मू.४० भविस्सइ, गो०। बहुसमरमणि भूमिभागे भविस्सद जाब कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव, तीसे गं भंते ! समाए मणुआणं केरिसए आयारभावपटोमारे भविस्सइ, गोअमा! तेसि णं मणुआर्ण छबिहे संपयणे छबिहे संठाणे बहईओ रवणीओ उर्दू उच्चत्तेणं जहणेणं अंतोमुहुर्त उकोसेणं साइरेगं वाससर्व आउअं पालेहिंति २ ता - अप्पेगइमा जिरयगामी जाव अप्पेगइआ देवगामी, ण सिझंति । तीसे गं समाए एकवीसाए बाससहस्सेहिं काले वीइकते अणंतेहिं यण्णपजवेहिं जाव परियट्टेमाणे २ एत्य णं दुसमसूसमाणामं समा काले पडिवजिस्सइ समणाउसो!, तीसे ण भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आधारभावपटोआरे भविस्सइ !, गोअमा.! बहुसमरमणिजे जाव अकित्तिमेहि चेब, तेसि गं भंते ! मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे भवि ॥१७५॥ स्सइ!, गो०! तेसि णं मणुआणं छबिहे संघयणे छविहे संठाणे बहूई धणूई उद्धं उच्चत्तेणं जहण्णणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं पुब्बकोडीभावों पालिहिति २त्ता अप्पेगइआ णिरवगामी जाव अंतं करोहिंति, तीसे गं समाए तओ वंसा समुपजिस्संति, तं-. अथ उत्सर्पिणीकाले भरतक्षेत्रस्य स्वरुपं वर्ण्यते ~362
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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