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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ----------------------- ----------------------- मूलं [३४-३६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: श्रीजम्बू प्रत द्वीपशा २वक्षस्कारे चतुर्थपञ्चमषष्ठारकाः सूत्रांक [३४-३६] न्तिचन्द्रीया वृत्तिः ॥१६५॥ दीप खरतिक्षणक्सकंदराविकवर्गणू तोलगतिविसमसंविधणा समाजहिअषिमन्तव्यलकुसंधयणकुष्पमणिकुसठिया सुरुवा कहाणासणकुसेजकुमोक्षणो असुइणो अणेगवाहिपीलिअंगमंगा खलंतविम्भलगई णिच्छाहा सत्तपरिवनिता विगयट्ठा महत्ता अमिक्खणं सीधहसरफरसवायविज्झाडिअमलिणपसुरओगुंडिअंगमंगा बहुकोरिमाणमायालोमा बहुमोहा असुमदुक्समागी ओसणे धम्मसण्णसम्मतपरिमहा कोसेणं रणिप्पमाणमेत्ता सोलसवीसइयासपरमाउसो गहुपुत्तर्णसुपरियालपणयबाहुला गंगासिंधूलो महागईमो वेभहुंच पाय नीसाए बापतरि णिगोंगवी पीजमत्ता बिलवासिणो मणुभामविस्संति, सेण भंते ! मणुभा किमाहारिस्संति !, गोमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगासिंधूओ महाणईमो रहपहामिवित्थराओ अक्ससोभनमाणमेतं जलमोजिसहिति, सेविक्षणं जले बहुमच्छकच्छभाइण्णे, णो चेव गं आउबहुले भविस्सइ, तए ण ते मणुआ सूरुग्गमणमुपति म सूरत्यमणमुहुर्तसि अ विलहितो णिद्वाइस्सति विले. त्ता मच्छकच्छभे थलाई गाहे हिंति मच्छकच्छभे थलाई गहिता सीआतवनमार मच्छकच्छमेहि इकायीसं पाससहस्साई वित्ति कप्पेमाणा विहरिस्सति । तेणं भंते ! मणुआ णिस्सीला णिवया णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पणखाणपोसहोववासा ओसणे मंसाहारा मच्छाहारा खुड्डाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किचा कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति',गो० ओसणं णरगतिरिक्खजोणिपंसुं उववणिहिति । तीसे ण भंते ! समाए सीहा बग्धा विगा दीविआ अच्छा तरस्सा परस्सर सरमसियालविरालसुणगा कोलसुणगा ससगा चित्तंगा चिलगा ओसणं मंसाहारा मच्छाहास खोदाहारा कुणिमाहारा कालानि कालं किचा कहिं गरिदिति कहि उपजिहिंति !, गो01 ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिपसुं० उववजिहिति, तेणे भंते ! काका पीलगा मग्गुगा सिही ओसणं मंसाहारा आब कहिं गच्छिहिति कादि उवजिहिति !, गोअमा! ओसणं गारगतिरिक्सागोणिए जाप उबवजिहिति (सूत्र ३६) Featee999900000 अनुक्रम [४७-४९]] ॥१६५॥ SElem storyen ~342
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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