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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ----------------------- ------- मूलं [३४-३६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३४-३६] दीप अनुक्रम [४७-४९] रतस्सला रेणुकलुसतमपडलणिरालोमा समयलुक्खयाए णं अहिभं चंदा सी मोच्छिहिंति अहिले सूरिभा तविसति, अत्तरं चणं गोभमा ! अभिक्खणं अरसमेहा विरसमेहा खारमेहा खत्तमेहा अम्गिमेहा विजुमेहा विसमेहा अजवणिमोदगा पाहिरोगवेदणोदीरणपरिणामसलिला अमणुण्णपाणिअगा चंडानिलपहततिक्खधाराणिवातपउरं वासं वासिहिति, जेणं भरहे वासे गामागरणगरखेडकबडमदंबदोणमुहपट्टणासमगयं जणवयं चउप्पयगवेलए सहयरें पक्खिसंघे गामारण्णप्पवारणिरए तसे अ पाणे बटुप्पयारे रुक्सगुच्छगुम्मलयवलिपवालंकुरमादीए तणवणस्सइकाइए ओसहीओ अ विद्धंसेहिंति पचयगिरिडोंगरुत्थलभट्ठिमादीए अ वेअगिरिवजे विरावहिति, सलिलविलविसमगत्तणिण्णुष्णयाणि अगंगासिंधुबजाई समीकरोहिंति, तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए केरिसए आगारभावपडोआरे भविस्सइ, गोयमा! भूमी भविस्सइ इंगालभूभा मुग्गुरभूमा छारिमभूभा तत्तकबेलुअभूभा तत्तलमजोहभूआ धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणयबहुला चलणिबहुला बहूर्ण धरणिगोभराणं सत्ताणं दुनिकमा यावि भविस्सई । तीसे ण भंते ! समाए भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपटोआरे भविस्सइ!, गोयमा ! मणुभा भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुगंधा दुरसा दुफासा मणिहा अकंवा अप्पिा असुभा अमणुना भमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिहस्सरा अर्कतस्सरा अपिअस्सरा अमणामस्सरा अमणुण्णस्सरा अणादेज्जवयणपञ्चायाता जिल्ला कूडकवडकलहपंधवेरनिरया मजायातिकमप्पहाणा अकमणिकाजुया गुरुणिोगविणयरहिआ य विकलरूवा परूढणहकेसमंसुरोमा काला खरफरुससमावण्णा फुट्टसिरा कविलपलिअकेसाबरण्डारुणिसंपिणदुरंसमिजरूवा संकुडिअवलीतरंगपरिवेढिअंगमंगा जरापरिणयब थेरगणरा पविरलपरिसडिअदंतसेढी उन्मउघडमुद्दा विसमणयणवंकणासा बंकवली विगयभेसणमुद्दा दुईविकिटिभसिन्भफुडिअफसच्छयी चित्तलंगभंगा कच्छ्खसरामिभूमा aeseroen ~341
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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