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आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], -----------------------
-------- मूलं [३४-३६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
प्रत
श्रीजम्यू
द्वीपशान्तिचन्द्रीया वृतिः ॥१६॥
वक्षस्कारे चतुर्थपञ्चमषष्ठारकाः म.३४-३५
सूत्रांक
[३४-३६]
तेसि मणुाणं छविहे संघयणे ठविहे संठाणे बहूई धणूई उद्धं उचत्तेणं जहण्णेणं अंतोबहुतं उकोसेणं पुषकोबीभाउ पाति २ त्ता अप्पेगइआ णिरयगामी जाव देवगामी अप्पेगइया सिझंति बुझति जाव सावदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे समाए तओ वंसा समुपजित्था, ' तंजहा-अरहंतवंसे चकवट्टिवंसे इसारवंसे, तीसे णं समाए तेवीस तिजायरा इकारस चकवट्टी णव बलदेवा णव वासुदेवा समुष्पज्जित्था । (सूत्र ३४) तीसे गं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए वायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले वीइकते अणंतेहिं वणपनवेहिं तहेव जाव परिहाणीए परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो, तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे भविस्सइ !, गोअमा ! बहुसमरमणिो भूमिभागे भविस्सइ से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव, तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणुआणं केरिसए आयारभावपद्धोयारे पण्णत्ते !, गो० तेसि मणुआणं छविहे संघयणे छबिहे संठाणे बहुइओ रयणीओ उर्दू उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आच पालेंति २ ता अप्पेगइआ णिरयगामी जाव सबदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे णं समाए पचिंद्रमे विभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे अ वोच्छिजिस्सइ । (सूत्र३५) तीसे णं समाए एकवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइकते अणतेहिं वण्णपजवेहिं गंधरस०फासपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे २ एस्थ णं दूसमदूसमाणामं समाकाले पडिवजिस्सइ समणाउसो!, तीसे पं भंते ! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ !, गोमा ! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए कोलाइलभूए समाणुभावेण य खरफरूसधूलिमइला दुधिसहा वाउला भयंकरा य वाया संबट्टगा य वाईति, इह अमिक्खणं २ धूमाहिति अ दिसा समंता
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दीप अनुक्रम [४७-४९]
॥१६॥
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