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________________ आगम (१८) प्रत सूत्रांक [१९R] गाथा: दीप अनुक्रम [२७-३२] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र - ७ (मूलं + वृत्तिः) वक्षस्कार [२], मूलं [१९R] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१८] उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्तिः श्रीजम्मूद्वीपचान्तिचन्द्री - या वृतिः ॥ ९७ ॥ वा बहने उहाला कुद्दाला मुझला कयमाला गट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला से अमाला णामं दुमगणा पण्णत्ता, कुसविकुसविमुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव वीअमंतो पत्तेहि अ पुप्फेहि अ फलेहि अ उच्छष्णपडिच्छष्णा सिरीए आई डवसोमेमाणा चिति, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहवे भेरुतावणाई हेरुतालवणाई मेरुवालवणाई पभयालवणा सालवणाई सरलबणाई सत्तिबण्णवण्णाई पूअफलिवणाई सज्जूरीवणाई णालिएरीवणाई कुसविकसविसुद्धरुक्खमूलाई जाव चिट्ठति, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहुवे सेरिआगुम्मा णोमालिआगुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीअगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुञ्जायगुम्मा सिंदुवारगुम्मा मोमारगुम्मा जूहिआगुम्मा महिभागुम्मा वासंतिआगुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुस्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतिआगुम्मा चंपकगुम्मा जातीगुम्मा णक्णीइआगुम्मा कुंदगुम्मा महाजाइगुम्मा रम्मा महामेद्दणिकुरंबभूआ दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेति जे णं भरहे वाले बहुसमरमणिजं भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिअं करंति, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तहिं तहिं बहुओ पडमलयाओ जाव सामलयाओ णिचं कुसुमिआओ जाव उयावण्णओ, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ २ तर्हि २ बहुद्दओ वणराइओ पण्णत्ताओ किन्हाओ किन्होभासाओ जाक मणोहराओ रथमत्तगछप्पयकोरगभिंगारगकोंडलगजीवंजीवगनंदीमुहरु विलपिंगलक्खगकारंडव चक्कवायगकलहंस हंससारस अणेगसउणगणमिहुणविअरिमाओ सहुणइयमरसरणादजाओ संपिंडिअ णाणाविहगुच्छ० वावीपुक्खरणीदीहिआसु असुणि० विचित्त० अभि० साउन्त० ि रोगक० सोउअपुप्फफलसमिद्धाओ पिंडिमजावपासादीआओ ४, (सूत्र १९ ) Fu Frale & Pinunate Cy मूल-संपादकस्य मुद्रण-शुद्धि-स्खलनत्वात् अत्र सूत्रस्य क्रम १९ द्वि-वारान् मुद्रितं ~206~ నీ స్థిర ఏరు స్థిర పడి ప్రకింద స్తరించిన మరు २वक्षस्कारे सुषमसुष माधिकारः सू. १९ ।। ९७ ।। anntraryarg
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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