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आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:)
वक्षस्कार [१], -------------------- --------------------------------- मलं [१४] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१४]
गाथा:
अणियाहिवईणं सोलसह अयारक्सदेवसाहस्सीणं दाहिणभरहकूडस्स दाहिणट्टाए रायहाणीए अण्णेसि बहूर्ण देवाण व देवीण य जाब विहय ।। कहि णं भंते ! दाहिणभरहकूडस्स देवस्स दाहिणड्डा णामं रायहाणी पण्णता !, गो०! मंदरस्स पचतस्स दक्षिणेणं तिरियमसंखेजदीवसमुरे वीईवदत्ता अयणं जंबुद्दीवे दीवे दक्षिणेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्य ण दाहिणवृभरहकूलस्स देवस्स पाहिणभरहा णामं रायहाणी भाणिअबा जहा विजयस्स येवस्स, एवं सबकूदा यया जाय वेसमणकूले परोप्परं पुरच्छिमपञ्चस्थिमेणं, इमेसिवण्णावासे गाहा-'मझे वेअथस्स उ कणयमया तिण्णि होति कूडा उ । सेसा पञ्चयकूडा सो रयणामया होति ॥ १॥ माणिभरफूडे १ बेअदृकूले २ पुण्णभकूडे ३ एए तिणि कूडा कणगामया सेसा छप्पि रयणमया, दोण्हं विसरिसणामया देवा कयमालए चेव गट्टमालए चेव, सेसाणं छहं सरिसणामया-जण्णामया प फूटा तन्नामा खलु हवंति ते देवा । पलिओवमहिईया हवंति पत्तेअपत्तेयं ॥१॥ रायहाणीओ जंबुरीचे दीवे मंदरस्स पवयस्स दाहिणेणं विरि असंखेज्जदीवसमुरे वीईवइत्ता अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे वारस , जोमणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्व णं रायहाणीओ भाणिअचाओ विजयरायहाणीसरिसयाओ (सूत्र १४)
'कहिण' मित्यादि, अत्र सर्वापि पदयोजना सुगमा, नवरं प्रासादावतंसकः क्रोशमूर्दोच्चत्वेनाईक्रोशं विष्कम्भेन, 18|| 8 अत्र सूत्रेऽनुक्तमप्यर्द्धकोशमायामेनेति बोध्यं, 'सेसेसु अ पासाया कोसुच्चा अद्धकोसपिहुदीहा' इत्यादिश्रीसोमतिलक-18
रिकृतसिरिनिलयमितिक्षेत्रविचारवचनात्, श्रीउमाखातिकृते जम्बूद्वीपसमासे तु प्रासादावतंसकः क्रोशाक्रोशदै-18
दीप अनुक्रम [१५-१८]
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