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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [8], ------------------------ -------- मूलं [१३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: द्वीपशा प्रत सूत्रांक [१३] श्रीजम्यू-18 प्रतिष्ठापनान्तरविचारण!, ततः शाश्वतप्रतिमासु सहजसिद्धमेवाराध्यत्वमिति न किश्चिदनुपपन्नमिति, अत्र प्रतिमानां वक्षस्कारे | उत्सेधाङ्गुलमानेन पञ्चधनुःशतप्रमाणानां प्रमाणाङ्गुलमानेन पञ्चधनुःशतायामविष्कम्भे देवच्छन्दकेऽनवकाशचिन्ता न सिद्धायत: विधेयेति, अन्न प्रतिमावर्णकसूत्रं एवं-'जाव धूवकडुच्छुगा' इति सूत्रेण सूचितं जीवाभिगमायुक्तमवसेयं, तच्चेदम् नकूटवर्णन या चिः सू. ३० 'तासि णं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णते, तंजहा-तवणिजमया हत्थतलपायतला अंकामयाई णक्खाई 18 अंतोलोहियक्खपडिसेगाई कणगामया पाया कणगामया गुप्फा कणगामईओ जंघाओ कणगामया जाणू कणगामया 81 18|| ऊरू कणगामईओ गायलट्टीओ रिद्वामए मंसू तवणिज्जमईओ णाभीओ रिद्वामईओ रोमराईओ तवणिज्जमया || चुचुआ तवणिजमया सिरिवच्छा कणगमईओ बाहाओ कणगामईओ गीवाओ सिलप्पवालमया उद्या फलिहामया दंता तवणिज्जमईओ जीहाओ तवणिजमया तालुआ कणगमईओ णासिगाओ अंतोलोहिअक्सपडिसेगाओ। अंकामयाई अच्छीणि अंतोलोहिअक्खपडिसेगाई पुलगामईओ विट्ठीओ रिहामईओ तारगाओ रिद्वामयाई अच्छिपत्ताई रिद्वामईओ भमुहाओ कणगामया कवोला कणगामया सवणा कणगामईओ णिडालपट्टियाओ वइरामईओ || सीसघडीओ तवणिजमईओ केसंतकेसभूमिओ रिहामया उपरिमुद्धया, तासि णं जिणपडिमाणं -पिट्टओ पत्तेयं ॥८॥ छत्तधारपडिमा पण्णत्ता, ताओ णं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुंदिंदुष्पगासाई सकोरंटमल्लदामाई धवलाई आयवशताई सलील ओहारेमाणीओ चिट्ठति, तासि णं जिणपडिमाणं उभओपासिं पचे २ दो दो चामरधारपडिमाओ ब्रटस्ट अनुक्रम [१४] ~171
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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