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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [१], ----------------------- ------- मूलं [१२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२] चं आयामेणं पण्णत्ता, तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुठ्ठा पुरथिमिलाए कोडीए पुरथिमिलं लवणसमुई पुष्टा पञ्चथिमिलाए कोडीए पञ्चस्थिमिदं लवणसमुदं पुट्ठा दस जोयणसहस्साई सत्त य वीसे जोअणसए दुवालस व एगूणवीसइभागे जोअणस्स आवामेणं तीसे धणुपट्टे दाहिणेणं दस जोधणसहस्साई सत्त य तेआले जोयणसए पण्णरस य एगूणवीसहभागे जोषणस्स परिक्खेषेणं रुअगसंठाणसंठिए सबरययामए अच्छे संण्हे लढे घढे मढे जीरए णिम्मले णिपके णिक्कंकडच्छाए सप्पमे समिरीए पासाईए दरसणि अभिरूवे पडिरूवे। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहि वोहि अवणसंडेहिं सबओ समंता संपरिक्खित्ते । ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उर्दू उत्तेणं पंचधणुसयाई विक्संभेणं पवयसमियामो आयामेणं वण्णओ भाणियो । ते णं वणसंडा देसूणाई दो जोषणाई विक्खंभेणं पउमवरवेझ्यासमगा आयामेणं किण्हा किण्होभासा जाव वण्णओ। वेयद्धस्स पञ्चयस्स पुरच्छिमपञ्चच्छिमेणं दो गुहाओ पण्णत्ताओ, उत्तरदाहिणाययाओ पाईणपढीणविस्थिष्णाओ पण्णास जोमणाई आयामेण दुवालस जोभणाई विक्रमेणं अट्ठ जोषणाई उद्धं उच्चत्तेणं वइरामयकवाडोहाहिआमओ, जमलगुअलकवानपणदुष्पवेसाओ णिश्चंधयारतिमिस्साओ ववगवगहचंदसूरणक्खत्तजोइसपहाओ जाव पडिरुवाओ तंजहा-तमिसगुहा चेव खंडप्पवायगुहा चेव, सत्थ णं दो देवा महिनीया महायुईया महाबला महायसा महासुक्खा महाणुभागा पलिओवमटिईया परिपसंति, तंजहा--- कर्यमालए चेव णमालए चेव । तेसि गं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेअद्धस्स पायस्स उभो पासिं दस दस जोअणाई उद्धं उप्पइत्ता एस्थ ण दुवे विजाहरसेटीओ पण्णतामो पाईणपढीणाययाओ उदीणदाहिणविरिणामओ दस दस जोअणाई विक्खंमेणं पचयसमियाओ आयामेणं जमलो पासिं दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहि वणसंटेहि संपरिक्खित्ताओ, ताओ गं अनुक्रम [१३] eesesea 250000000 ~152
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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