SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१६) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [२०] “चन्द्रप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-६ ( मूलं + वृत्तिः) - प्राभृतप्राभृत [१], मूलं [१] प्राभूत [१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः सूर्यप्रज्ञप्ति आधारेण मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[१७],उपांगसूत्र-[६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीता वृत्ति सूर्यप्रज्ञसिवृत्तिः ( मल० ) |||| ------ 'जाव राजा जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए' इति, अत्र यावच्छन्दादिदमोपपातिकप्रन्थोक्तं द्रष्टव्यं 'तए णं सा महइमहालिया परिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हडतुडा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं करेइ करिता बंदर नमसइ वंदित्ता नर्मसित्ता एवं व्यासी- सुयक्खाए णं भंते ! निम्गंथे पावयणे, नत्थि य केइ अने समणे वा माहणे वा एरिसं धम्ममा इक्खिसए, एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया, तए णं से जियसनू राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धमं सुच्चा निसम्म हडतुडे जाव हयहियए समणं भगवं महावीरं वंदइ नर्मसइ वंदित्ता नर्मसित्ता पसिणाई पुच्छर पुच्छित्ता अट्ठाई परियाएर परिवाइता उडाए उडाइ, उडाए उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी-सुयक्खाए णं भंते ! निग्गंथे पावयणे जाव एरिसं धम्ममा इक्खित्तए, एवं वइत्ता हत्थि दुरूहइ दुरूहित्ता समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियाओ माणिभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जामेव दिसं पाउडभूए तामेव दिसं पडिगए' (सु. ३५ ३६-३७) इति इदं च सकलमपि सुगमं, नवरं यामेव दिशमवलम्ब्य, किमुक्तं भवति ? - यतो दिशः सकाशात् प्रादुर्भूतःसमवसरणे समागतस्तामेव दिशं प्रतिगतः । समए णं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूती णामे (मं) अणगारे गोतमे गोतेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसंघयणे जाव एवं बयासी ( सू २ ) "ते णं काले णं ते णं समए णं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेहे अंतेवासी इंदभूई नामे अणगारे गोयमे Education intentional For Pata Und ~ 25~ प्रस्तावना. ॥६॥
SR No.035022
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 22 Chandrapragyapti Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages614
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size133 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy