________________
आगम (१७)
चन्द्रप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
प्राभृत [४], -------------------- प्राभृतप्राभृत -1, -------------------- मूलं [२५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: सूर्यप्रज्ञप्ति आधारेण मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१७],उपांगसूत्र-[६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[२५]]
दीप
सूर्यप्रज्ञ- वाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सत्धिमुहसंठिया,उभयोपासेणं तीसे दुवे वाहाओ अववियाओ प्राभृते प्तिवृत्तिः
भवंति, पणयालीसं २ जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवडिआओ भवंति, तंजहा-अमितरिया चेवर तापक्षत्र(मल.) चाहा सबबाहिरिया चेव वाहा, तीसे णं सबभतरिया वाहा मंदरपबयंतेणं छ जोयणसहस्साई तिन्नि य चउवीसे जोया
प्रमाण
सू२५ ॥७५॥ माणसए छच्च दसभागा जोयणस्स परिक्खेवणं आहियत्ति वएजा, तीसे णं परिक्खेवविसेसे कओ आहियत्तिवएज्जा, ताप
जेणं मंदरस्स पवयस्स परिक्खेवे ते णं दोहिं गुणित्ता दसहिं छित्सा दसहिं भागे हीरमाणे, एस गं परिक्खेवविसेसे। & आहियत्ति वएज्जा?, ता से णं तावक्खेत्ते केवइयं आयामेणं आहियत्ति वएज्जा?, ता तेसीइ जोयणसहस्साई तिनि तेत्तीसे
जोयणसए जोयणतिभागं आहियत्ति वएज्जा, तया णं किंसंठिया अंधकारसंठिई आहिअत्ति वइजा, ता उड्डीमुहक-| लंबुयापुप्फसंठाणसंठिया आहियत्ति वएज्जा, अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसठिया है बाहिं सत्थिमुहसंठिया उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ भवंति, पणयालीसं २ जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य गं
तीसे पाहाओ अणवाहियाओ भवंति, तंजहा-सबभतरिया चेव बाहा सबबाहिरिया चेव बाहा, तीसे णं सबभतरिया: बाहा मंदरपत्यंतेणं नव जीयणसहस्साई चत्तारि य छलसीए जोयणसए नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेर्ण माहि-18 यत्ति वएज्जा, ता जे णे मंदरस्स पबयस्स परिक्लेवे ते परिक्खेवं तिहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस
ण परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएजा, तीसे णं सबबाहिरिया बाहा लवणसमुईतेण चउणजई जोयणसहस्साई अह य| Xअहे जोयणसए चत्वारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिए इति वएज्जा, वा एस णं परिक्खेवविसेसे को
अनुक्रम
[३९]
FirmaaMAPINHINORN
~163~