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________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ------------- मूलं [४६-४८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४६-४८] दीप नामे जणवए होत्था, रिथिमियसमिद्धे, तत्थ णं केइयअहे जणवए सेपविया णाम नगरी होत्था, रिडस्थिमियसमिहा जाव पडिरूवा। तीसे ण सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभागे एत्थ णं मिगवणे णाम उजाणे होत्या, रम्मे नंदणवणपगासे सदोउयफलसमि-डे सभमुरभिसीयलाए छायाए सवओ चेव समणुचढे पासादीए जाव पडिरूवे, तत्थ ण सेयवियाए णगरोए पएसी णाम राया होत्था, महयाहिमवंत जाव विहरह अधम्मिए अधम्मिट्टे अधम्मक्खाई अधम्माणुए अधम्मपलोई अधम्मपजणणे अधम्मसीलसमुयारे अधम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे हणछिंदर्भिदापवत्तए चने रुदे खुद्दे लोहियपाणी साहस्तीए उकंचणवंचणमायानियडिकूडकवडसायिसंपओगवाहले निस्सीले निवए निग्गुणे निम्मेरे निप्पचक्खाणपोसहोववासे यहणं दुपयच उप्पयमियपसुपक्षीसिरिसवाण घायए वहाए उच्छेणयाए अधम्मकेऊ समुट्ठिए, गुरूणं णो अन्भुटेति णो विणयं पञ्जइ, समण० सयस्सवि य र्ण जणवयस्स णो सम्मं करभरवित्ति पवने ॥ (स०४८)। 'सूरियाभस्स भंते ! देवस्स केवइयं काल' मित्यादि सुगम ॥ (मू०४६)॥'गामसि येति असते युद्धयादीन् गुणान् यदिवा गम्यः शाखपसिद्धानामष्टादशानां कराणामिति ग्रामस्तस्मिन् 'नगरसि वे' तिन वियते करो यस्मिन् तनगर तस्मिन् निगम:-अभूततरवणिग्वर्गावासः राजाधिष्ठान नगरं राजधानी पांभुपाकारनिवर्ट खेटे चालकप्राकारष्टितं की अर्धगव्यूततृतीयान्तीमान्तररहितं मैडपं, 'पणसि वे' ति पट्टन-जलस्थलनिर्गममवेशः, उक्तं - अनुक्रम [४६-४८] ~236~
SR No.035015
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size68 MB
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