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आगम
(१०)
भाग-[१३] “भाग-१३ “प्रश्नव्याकरणदशा" - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्ति:)
श्रतस्क न्ध : [१], -----------------------अध्य यनं [१]----------------------- मलं [...४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१०], अंगसूत्र- [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[४]
टोप
अंसुपगलंतपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हाइयम्ह कलुणाणि जंपमाणा विष्पेक्खन्ता दिसोदिसि अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविष्पहूणा विपलायति य मिगा इव वेगेण भयुब्धिग्गा, घेत्तूण बला पलायमाणाणं निरणुकंपा मुहं विहाडेत्तुं लोहडंडे हिं कलकलं ण्हं वयणंसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता, तेण दहा संतो रसंति य भीमाई विस्सराई रुवंति य कलुणगाई पारेवतगाव एवं पलवितविलावकलुणाकंदियबहुरुन्नरुवियसद्दो परिवेवितरुद्धबद्धयनारकारवसंकुलो णीसहो रसियभणियकुविउकइयनिरयपालतजिय गेहकम पहर छिंद भिंद उप्पाडेहुक्खणाहि कत्ताहि विकत्ताहि य भुजो हण विहण विच्छुभोच्छुम्भ आकड विकह कि ण जंपसि? सराहि पावकम्माई दुक्कयाई एवं वयणमहप्पगन्भो पडिसुयासहसंकुलो तासओ सया निरयगोयराण महाणगरडज्झमाणसरिसो निग्योसो सुच्चए अणिट्ठो तहियं नेरइयाणं जाइज्जताणं जायणाहिं, किं ते?, असिवणदब्भवणर्जतपत्थरसूइतलक्खारवाविकलकलंन्तवेयरणिकलंबवालुयाजलियगुहनिरंभण उसिणोसिणकंटइल्लदुग्गमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि इ. मेहिं विविहेहिं आयुहेहिं किं ते मोग्गरमसंदिकरकयसत्तिहलगयमुसलचककोंततोमरसूललउलभिं डिमालसद्द(ड)लपट्टिसचम्मेद्वदुहणमुडियअसिखेडगखग्गचावनारायंकणककप्पणिवासिपरसुटकतिक्खनिम्मल अण्णेहि य एयमादिएहिं असुभेहिं वेउब्बिएहिं पहरणसतेहिं अणुवद्धतिब्बवेरा परोप्परवेयर्ण उदीरेंति अभिहर्णता, तत्थ य मोग्गरपहारचुणियमुसुंढिसंभग्गमहितदेहा जंतोवपीलणफुरंतकप्पिया केइत्थ सच
अनुक्रम
CREARCH
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