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आगम (८)
भाग [१३] “अन्तकृद्दशा” – अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [८], ------------------------ अध्य यन [९, १+] ---------------------- मूलं [२५, २६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [८, अंगसूत्र- [८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२५,२६]
णियं पारेति, एकाए कालो एक्कारस मासा पनरस य दिवसा चउण्डं तिणि वरिसा दस य मासा सेसं जाय सिद्धा। (सू०२५) एवं महासेणकण्हावि, नवरं आयंबिलवहमाणं तवोकम्म उवसंपजित्ताणं विह-L रति, तंजहा-आयंबिलं करेति २ चउत्थं करेति २ वे आयंबिलाई करेति २ चउत्थं करेति २ तिन्नि आयंबिलाई करेति २ चउत्थं करेति २ चत्तारि आयंबिलाई करेति २ चउत्थं करेति २पंच आयंबिलाई करेति २ चिउत्थं करेति २छ आयंबिलाई करेति २चउत्थं करेति २ एवं एकोत्तरियाए वहीए आयंबिलाई वहुंति चउत्तरियाई जाव आयंबिलसयं करेति २ चउत्थं करेति, तते णं सा महासेणकण्हा अजा आयंबिलवहमाणं तवोकम्मं चोदसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासत्तं जाय सम्म कारणं फासेति जाव आराहेत्ता जेणेव अजचंदणा अज्जा तेणेव उवा०० न० वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउ. त्थेहिं जाच भावमाणी विहरति, तते णं सा महासेणकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी चिइ, तए णं तीसे महसेणकण्हाए अजाए अन्नया कयाति पुव्वरत्तावरत्तकाले चिंता जहा खंदयस्स जाच अजचंदणं पुच्छइ जाव संलेहणा, कालं अणवखमाणी विहरति, त० सा महसेणकण्हा अजा अज्जचंदणाए अजाए अं० सामाइयाति एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नातिं सत्तरस वासातिं परियायं पालइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झुसेत्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता जस्सहाए कीरह जाव तमह आ-|
दीप
अनुक्रम [५८,५९]
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| महापितृसेनकृष्णाराणी-तस्या वर्द्धमानतपोकर्मन: वर्णनं
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