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आगम
भाग [१३] “अन्तकृद्दशा” – अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्तिः )
वर्ग: [८], ------------------------अध्य यन [५] ----------------------- मूलं [२१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [८] अंगसूत्र- [८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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सूत्रांक [२१]
भोषणस्स तिन्नि पाणयस्स च०५०७० सत्तमे सत्तते सत्त दत्तीतो भोयणस्स पडिग्गाहेति सत्त पाणयस्स, एवं खलु एवं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपन्नाते रातिंदिपहिं एगेण य छन्नउएणं भिक्खासतेणं अहा
सुत्ता जाव आराहेत्ता जेणेव अजचंदणा अजा तेणेव उवागया अज्जचंदणं अजं न०२ एवं व०-इच्छामि पण अजातो! तुन्भेहिं अन्भणुण्णाता समाणी अहमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरेत्तते, अहासुहं, है तते गं सा सुकण्हा अजा अज्जचंदणाए अग्भणुण्णाया समाणी अहमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं । साविहरति, पढमे अट्ठए एकेक भोयणस्स दसि पडि. एकेक पाणगस्स जाच अट्ठमे अट्ठए अद्दष्ट भोयणस्स पडि
गाहेति अट्ठ पाणगस्स, एवं खलु एवं अहमियं भिक्खुपडिमं चउसट्ठीए रातिदिएहिं दोहि य अट्ठासीतेहिं भिक्खासतेहिं अहा जाव नवनवमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरति, पढमे नवए एकेक भोय-| णस्स दतिं पडि० एकेक पाणयस्स जाव नवमे नवए नव नव द. भोक पढि० नव २ पाणयस्स, एवं खलाश नवनवमियं भिक्खुपडिमं एकासीतीराइंदिएहिं चउहिं पंचोत्तरेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्ता, दसदसमियं भिक्खुपडिम उवर्सपज्जित्ताणं विहरति, पढमे दसते एकेक भोय. पडि. एक पाण: जाव दसमे बसप दस २ भो० दत्ती पडिग्गाहे. दस २ पाणस्स०, एवं खल एवं दसदसमियं भिक्खुपडिम एकेणं राईदिय
सतेणं अद्धण्द्धेहिं भिक्खासतेहिं अहासुतं जाच आराहेति २ यहिं चउत्थ जाच मासद्धमासविविहतचोकसम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरति, तए णं सा सकण्हा अजा तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा निक्खेवो अजा
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अनुक्रम [१४]
सुकृष्णाराणी तस्या सप्तसप्ततिका तप: वर्णनं
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