SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (८) भाग [१३] “अन्तकृद्दशा” – अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [३], ----------------------- अध्ययन [८] ----------------------- मूलं [६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [८] अंगसूत्र- [८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: . प्रत सुत्रांक अन्तकृद- णिते, अहं ने अपना अपुन्ना अकयपुन्ना एस्तो एकतरमपि न पत्ता, ओहय जाव झियायति । हर्म च णं कण्हे ३ वर्ग शाहू लवासुदेवे पहाते जाव विभूसिते देवतीए देवीए पायवदते हव्यमागच्छति, तते णं से कण्हे वासुदेवे देवई देविंद गजसुकु॥८ ॥ पासति २ सा देवतीए देवीए पायग्गहणं करेति २ देवती देवीं एवं वदासि-अन्नदा णं अम्मो! तुन्भे ममं मारा पासेत्सा हट्ठ जाव भवह, किपणं अम्मो! अन तुन्भे ओहय जाव झियायह?, तए णं सा देवती देवी ८ध्ययन कण्हं वासुदेवं एवं व०-एवं खलु अहं पुत्ता! सरिसए जाव समाणे सत्त पुत्ते पयाया नो चेव णं मए स०५ एगस्सवि बालत्तणे अणुभूते तुमंपिय णं पुत्ता! ममं छहं २ मासाणं ममं अंतियं पादवंदते हब्वमा गच्छसि तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयातो जाव झियामि, तए णं से कण्हे वासुदेवे देवतिं देवि एवं व०-मा |तुम्भे अम्मो! ओहय जाव झियायह अहण्णं तेहा घत्तिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए| भविस्सतीतिकट्ठ देवतिं देविंताहिं इटाहिं वग्गूहि समासासेतिर ततो पडिनिक्खमति २जेणेच पोसहसाला अनुक्रम [१३] ॥ ८ ॥ १ एत्तोत्ति विभक्तिपरिणामादेषामुक्तविशेषणवतो डिम्भानां मध्यात् एकतरमपि-अन्यतरविशेषणमपि डिम्भं न प्राप्ता इत्यु|पहत्तमनःसङ्कल्पा भूगतदृष्टिका करतले पर्यस्तितमुखी ध्यायति । २ वहा पत्तिस्सामिति यतिध्ये 'कणीयसेचि कनीयान्-कनिष्ठो | लघुरित्यर्थः । awathinesturare.org मूल-संपादने अत्र एक: मुद्रण-दोष: दृश्यते-शीर्षक-स्थाने सू+ ६ स्थाने सू+ ५ मुद्रितं गजसुकुमारस्य कथा ~135
SR No.035013
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 13 Upasakdasha Antkruddasha Anuttaropapatikdasha Prashnavyakaran Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages538
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy