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आगम
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भाग-१३ “उपासकदशा" - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययन [१],
------ मूलं [३-५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[७], अंगसूत्र- [७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[३-५]
दीप अनुक्रम [५-७]
कोडीओ बुडिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडिओ पवित्थरपउनाओ चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥से णं आणन्दे गाहावई वहणं राईसर जाव मत्थवाहाणं बहूस कजेस य कारणेसु य मन्तेसु य कुडम्बेस य गुज्झेस य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेस य आपुच्छणिजे पडिपुच्छणिजे, सयस्सवि य णं कुटुम्बस्स मेढी पमाणं आहारे आलम्बणं चक्खू, मेढीभूए जाव सव्वकजवट्टावए यावि होत्था ॥ तस्स णं आणन्दस्स गाहावइस्स सिवानन्दा नाम भारिया होत्था, अहीण जाव सुरूवा आनन्दस्स गाहावइस्स इट्ठा आणन्देणं गाहावइणा सद्धि अणुरना अविरत्ना इट्ठा सद्द जाव पञ्चविहे माणुस्सए कामभोए पञ्चणुभवमाणी विहरइ ॥ तस्स णं वाणियगामस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्या, रिद्धस्थिमिय जाव पासादीए ४॥ तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे आणन्दस्स गाहावइस्स बहुए मित्तनाइनियमसयणसम्बन्धिपरिजणे परिवसइ,अड़े जाव अपरिभूए । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाच समोसरिए, परिसा निग्गया, कोणिए राया जहा तहा जियसत्तू निग्गच्छइ २ ना जाव पज्जुवासइ ॥ तए णं से आणन्दे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे एवं खलु समणे जाव विहरइ, तं महाफलं जाव गच्छामिण जाव पन्जुवासामि, एवं सम्पेहेइ २ ना पहाए । सुद्धप्पावेसाई जाव अप्पमहग्याभरणालङियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ ना सकोरण्टमल्लदामेणं छत्तेणं । धरिजमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिक्खिचे पायविहारचारेणं वाणियगामं नयरं मझमझिणं निग्गच्छइ २ ता जेणा
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