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आगम
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भाग-१३ “उपासकदशा' अध्ययन [८],
------ मूलं [१३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[७] अंगसूत्र- [७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सुत्रांक [५३]
दीप अनुक्रम [५५]
ठाणस्स आलोएहि जाव जहारिहं च पायच्छित्तं पडिवजाहि, तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महा-13 वीरस्स तहत्ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ २ चा तओ पडिणिक्खमइ २ चा रायगिह नयरं मझमझेणं अणुप्पविसइ २ चा जेणेव महासयगस्स समणोवासयस्स गिहे जेणेच महासयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, तए णं से महासयए भगवं गोयमं एजमाणं पासइ २ ता हट्ट जाव हियए भगवं गोयमं वन्दइ नमसइ, तए णं से भगवं गोयमे महासययं समणोवासयं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइभासइ पण्णवेइ परूवेइ-नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगस्स अपच्छिम जाव वागरिचए, तुमे णं देवाणुप्पिया ! रेवई गाहावइणी सन्तेहिं जाव वागरिआ, तं णं तुम देवाणुप्पिया ! यस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवजाहि, तए णं से महासयए समणोवासए भगवओ गोयमस्स तहत्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ २ ता तस्स ठाणस्स आलोएई जाव अहारिहं च पायच्छित्तं पडिवजह, तए णं से भगवं गोयमे महासयगस्स समणोवासयस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमइ २ चा रायगिहं नगरं मझमज्झणं निग्गच्छद २ चा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ना समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ २ चा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं| महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ २ ता बहिया जणवयविहारं विहरइ (सू. ५३) |
'नो खलु कप्पइ गोयमे'त्यादि, 'सन्तेहिति सद्भिविद्यमानार्थैः 'तञ्जेहिंति तध्यैस्तत्त्वरूपैर्वाऽनुपचारिकैः तहि-2
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