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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती"-अंगस शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८,९], मूलं [२९७-२९८,२९९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: * % % प्रत सूत्रांक [२९७-२९८] 4% * % दीप 'से नूर्ण भंतेहित्यिस्सेत्यादि, अनन्तरमविरतिरुक्ता सा च संयतानामप्याधाकर्मभोजिनां कथश्चिदस्तीत्यतः पृच्छति| 'अहे'त्यादि, 'सासए पंडिए पंडियतं असासयंति अयमर्थः-जीवः शाश्वतः पण्डितत्वमशाश्वतं चारित्रस्य बंशादिति ।। सप्तमशतेऽऽष्टमोद्देशकः ॥ ७-८॥ पूर्वमाधाकर्मभोक्तृत्वेनासंवृतवक्तव्यतोक्ता, नवमोद्देशकेऽपि तद्वतव्यतोच्यते, तत्र चादिसूत्रम् असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन्न एगरूवं विउषित्तए, णो तिणको समझे। असंवुडेणं भंते । अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवन एगरूवं जाव हंता पभू । से भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउवह तस्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउबति अन्नत्थगए पोग्गले परिया& इत्ता विकुबह, गोपमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुवह नो तत्थगए पोग्गले परिवाइत्ता विकुषह नो अन्नत्थगए पोग्गले जाव विकुवति, एवं एगवन्नं अणेगरूवं चउभंगो जहा छट्ठसए नवमे उद्देसए तहा इहावि भाणियचं, नवरं अणगारे इहगयं इहगए चेव पोग्गले परियाइत्ता विकुवइ, सेसं तं चेव जाव लुक्खपोग्गलं * निसपोग्गल साए परिणामेत्तए ?, हंता पभू, से भंते । किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता जाच नो अन्नस्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुबह ।। (सूत्रं २९९)॥ | 'असंखुडे ण'मित्यादि, 'असंवृतः' प्रमत्तः 'इहगए'त्ति इह प्रच्छको गौतमस्तदपेक्षया इहशब्दवाच्यो मनुष्यलोक % 4 4% अनुक्रम [३६९-३७०] अत्र सप्तम-शतके अष्टम-उद्देशक: समाप्त: अथ सप्तम-शतके नवम-उद्देशक: आरम्भ: ~71
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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