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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:]
शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३३], मूलं [३८३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
तिबोधः
प्रत सूत्रांक [३८३]
दीप
व्याख्या- जित्था-किन्नं अज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा मुगुंदमहेइ वा णागमहेइ वा जखम- १ शतके प्रज्ञप्तिः
हेह वा भूयमहेइ वा कूवमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा दहमहेइ वा पच्चयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा चेइ-17 उद्देशः ३३ अभयदेवी| यमहेइ वा थूभमहेइ वा जपणं एए यहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागा णाया कोरबा खत्तिया खत्तियपुत्ता ||
जमालिपया वृत्ति:२४
| महा भडपुत्ता जहा उचचाइए जाव सत्यवाहप्पभिइए पहाया कयघलिकम्मा जहा उबचाइए जाच निग्गच्छं॥४६॥ ति?, एवं संपेहेइ एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति कंचु०२ एवं वयासी-किण्हं देवाणुप्पिया ! अज
सू ३८३ हे खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छंति , तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारणं एवं वुत्ते समाणे हद्दतुडे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जमालि खत्तियकुमार जएणं विजएणं वहावेह बद्धावेत्ता एवं बयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंड-12 ग्गामे नयरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे जाव सबन्नु सबदरिसी माहणकुंडगामस्स नयरस्स बहिया घहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया बंदणवत्तियं जाव निग्गच्छति । तए णं से जमालियखत्तियकुमारे |2|| कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हहतुट्ट० कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावइत्ता ४११ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउरघंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह उचट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पञ्चप्पिणंति,
अनुक्रम [४६३]
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जमाली-चरित्रं
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