SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती”- अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:] शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३२], मूलं [३७५-३७७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: | उद्देशः ३२ क प्रत सूत्रांक [३७५ -३७७] दीप अनुक्रम [४५५-४५७] व्याख्या-लणए'ति तद्गामिनां तत्स्थानानां चाल्पत्वादिति ॥ अथ नारकादिप्रवेशनकस्यैवाल्पत्वादि निरूपयशाह-एयरस 'मि- शतके प्रज्ञप्तिः त्यादि, तत्र सर्वस्तोक मनुष्यप्रवेशनक, मनुष्यक्षेत्र एव तस्य भावात् , तस्य च स्तोकत्वात् , नैरयिकप्रवेशनकं त्वसङ्ख्या-18 अमयदेवी-४ तगुणं, तगामिनामसङ्ख्यातगुणत्वात् , एवमुत्तरत्रापीति ॥ अनन्तरं प्रवेशनकमुकं तत्पुनरुत्पादोद्वर्त्तनारूपमिति नारका प्रवेशनाल्पया वृत्तिः२ दीनामुत्पादमुद्वर्त्तनां च सान्तरनिरन्तरतया निरूपयन्नाह बहुत्वं सू ३७८ ॥४५३|| संतरं भंते ! नेरइया स्ववजंति निरंतरं नेरइया उववनंति संतरं असुरकुमारा उववजंति निरंतरं असुर-8 सान्तराद्य ॥ कुमारा जाव संतरं वेमाणिया उववज्जति निरंतरं वेमाणिया उववजंति संतरं नेरइया उवव९ति निरंतरं नेर- पादादि तिया उववस॒ति जाव संतरं वाणमंतरा उववति निरंतरं वाणमंतरा उववदृति संतरं जोइसिया चयंति सू ३७८ निरंतरं जोइसिया चयंति संतरं वेमाणिया चयंति निरंतरं बेमाणिया चयंति, गंगेया ! संतरंपि नेर-18 तिया उववजंति निरंतरं नेरतिया उववनंति जाव संतरंपि थणियकुमारा उववज्जंति निरंतरं थणिजयकुमारा उववजति नो संतरपि पुरविकाइया उबवज्जति निरंतरं पदविकाइया उववजंति एवं जाव वणस्स-11 इकाइया सेसा जहा नेरइया जाव संतरंपि वेमाणिया उववर्जति निरंतरंपि माणिया उधवजंति, संतरपि|| नेरइया उववटुंति निरंतरंपि नेरइया उववहृति एवं जाव थणियकुमारा नो संतरं पुढविकाइया उववहति ॥ ॥४५॥ | निरंतरं पुढविकाइया उबवटुंति एवं जाव वणस्सइकाइया सेसा जहा नेरड्या, नवरं जोइसियवेमाणिया |चयंति अभिलायो, जाव संतरपि वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चर्षति ।। संतो भंते ! नेरतिया उब SARERatun international पाापत्य गांगेय-अनगारस्य प्रश्ना: ~348~
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy