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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती"-अंगस शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [२७१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२७१] AEA दीप अनुक्रम [३३९] व्याख्या- एव 'एगंतदंडे'त्ति एकान्तेन-सर्वथैव परान् दण्डयतीत्येकान्तदण्डः, अत एव 'एकान्तवाला' सर्वथा वालिशोऽज्ञ इत्व- शतके प्रशप्तिः ||४ार्थः । प्रत्याख्यानाधिकारादेव त दानाह & उद्देशः २ अभयदेवीकतिविहे गं भंते ! पच्चक्खाणे पन्नत्ते?, गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पन्नते, तंजहा-मूलगुणपञ्चक्रवाणे य जीवादिज्ञा या वृत्तिः तासुप्रत्याउत्सरगुणपञ्चक्खाणे य । मूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-सच्च ख्यान:मू॥२९५॥ मूलगुणपचक्खाणे य देसमूलगुणपचक्खाणे य, सबमूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते, गोयमा लीत्तर &ा पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-सबाओ पाणाइवायाओ बेरमणं जाच सवाओ परिग्गहाओ बेरमणं । देसमूलगुण-दासू २७१ पञ्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पन्नते ?, गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं l ४|जाव थूलाओ परिगहाओ रमणं । उत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नते?, गोयमा! दुविहे || &ापनसे, तंजहा-सव्वुत्तरगुणपचक्खाणे य देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणे य, सम्वुत्तरगुणपचक्खाणे णं भंते ! कतिविहे || पन्नते ?, गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तंजहा-अणागय १ मतं २ कोडीसहियं ३ नियंटियं ४ चेवासागार ५ || मणागारं परिमाणकर्ड ७ निरवसेसं ८॥१॥ साकेयं ९चेच अद्धाए १० पचक्खाणं भवे दसहा ।। ॥२९५।। &|| देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे भंते ! कहचिहे पन्नत्ते?, गोयमा! सत्तविहे पन्नते. तंजहा-दिसिवयं १ उपभोगप-10 कारीभोगपरिमाणं २ अन्नत्थदंडरमणं ३ सामाइयं ४ देसावगासियं ५ पोसहोववासो ६ अतिहिसंविभागो७| अपछिममारणंतियसले हणाझुसणाराहणता (सूत्रं २७२) 5 E प्रत्याखानस्य मूल-उत्तरगुणरूप भेदा: ~32
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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