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________________ आगम [०५] प्रत सूत्रांक [३५३] टीप अनुक्रम [४२९] [भाग १] "भगवती" - अंगसूत्र- ५ [ मूलं + वृत्तिः ] [मूलं+वृत्तिः] शतक [८], वर्ग (-), अंतर-शतक (--), उद्देशक [९]. मूलं [ ३५३ ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [०५], अंगसूत्र- [ ०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः 1 तो तिसगइयविग्गहं पुण पडुच सुचं इमं होइ ॥ १० ॥ चउसमयविग्गहं पुण संखेजगुणा अबंधगा होति । एएसिं निदरिसणं ठवणारासीहिं वोच्छामि ॥ ११ ॥ पढगो होइ सहस्सं दुसमइया दोनि लक्खमेकं । तिसमइया पुण तिन्निवि रासी कोडी भवेकेका ॥ १२ ॥ एएसिं जहसंभवमत्थोवणयं करेजा रासीणं । एतो असंखगुणिया वोच्छं जह देसबंधा से ॥ १३ ॥ एगो असंखभागो वह उबवणो| ववायम्मि एगनिगोए निथं एवं सेसेमुवि स एव ॥ १४ ॥ अंतोमुहुतमेचा ठिई निगोयाण जं विणिदिट्ठा पलहंति निगोया तम्हा अंतोमुहुरे ॥ १५ ॥ तेखि ठितिसमयाणं विग्गहसमया हवंति जड़भागे । एवतिभागे सबै विमाहिया सेसजीवाणं ॥ १६ ॥ सबेबि य विग्गहिया सेसाणं जं असंखभागंमि । तेणासंखगुणा देसबंधयाऽबंधपति ॥ १७ ॥ वेउचिय आहारगतेयाक म्माई पढिय सिद्धाई । तहवि विसेसो जो जत्थ तस्थ तं तं भणीहामि ॥ १८ ॥ वेवियसबंधा थोवा जे पढमसमयदेवाई । तस्सेव देसबंधा असंखगुणिया कह के वा ? ॥ १९ ॥ [ उच्यते - ] तेर्सि चिय जे सेसा ते सधे सव्यबंध मोतुं । होति अवधाणता तव्वज्जा सेसजीवा जे ॥ २० ॥ आहारसब्वबंधा थोवा दो विन्नि पंच वा दस वा । संखेनगुणा देते ते उ पुडुचं सहस्साणं ॥ २१ ॥ तबज्जा सब्बजिया अबंधया ते हवंतऽणंतगुणा । थोवा अवन्धया तेयगरस संसारमुक्का जे ॥ २२ ॥ सेसा व देसबंधा तब्बजा ते हंवतऽणंतगुणा एवं कम्मगमेयावि नवरि णाणतमा उम्मि || २३ || [ तच्चायुर्नानात्वमेवम् ] थोवा आउयबंधा संखेजगुणा अबंधया होंति । तेयाकम्माणं सव्वबंधगा नत्थऽणाइत्ता ॥ २४ ॥ अस्संखेज्जगुणा आउगस्स किमबंधगा न भन्नंति जम्हा असंखभागो उन्बइ एगसमएणं ।। २५ ।। भन्नई एगसमइओ कालो उब्बडणार जीवाणं । बंधणकालो पुण आउगरस अंतोमुहुत्तो उ ॥ २६ ॥ जीवाण ठिईकाले आयबंधद्धभाइए लद्धं । एवइभागे आउस्स बंधया सेसजीवाणं ॥ २७ ॥ जं संखेज्जतिभागी ठिकालस्सा उबंधकालो उ तम्हाऽसंखगुणा Education International For Park Use Only ~271~ war
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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