________________
आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३४७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
या वृत्तिा
बन्धः
प्रत सूत्रांक [३४७]
व्याख्या भाजणं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समयाहियाई, देसबंधंतरं जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहत्त, शतके प्रज्ञप्तिः पुढविकाइयएगिदियपुच्छा गो! सबबंधतरं जहेव एगिदियस्स तहेच भाणियई, देसघंतरं जहन्नेणं एक समयं 8
उद्देशः९ अभयदेवीउक्कोसेणं तिन्नि समया जहा पुडविकाइयाणं, एवं जाव चारिदियाणं वाजकाइयवजाणं, नवरं सवबंधंतर
औदारिक उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयाहिया कायद्या, बाउक्काइयाणं सबबंधंतरं जहनेणं खुड्डामभवग्गहणं
| सू ३४८ ॥३९७॥ तिसमयऊणं उक्कोसेणं तिनि वाससहस्साईसमयाहियाई, देसबंधतरं जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुसं,
पंचिंदियतिरिक्खजोणियओरालियपुच्छा, सबबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं पुष-| कोडी समयाहिया, देसबंधंतरं जहा एगिदियाणं तहा पंचिंदियतिरिक्खजो०, एवं मणुस्साणवि निरवसेस भाणियचं जाव उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ॥ जीवस्स णं भंते ! एगिदियत्ते णोएगिदियत्ते पुणरवि एगिदियते एगिदियओरालियसरीरप्पओगधंतर कालओ केवचिरं होई, गोयमा ! सवयंधतरं जहन्नेणं दो खुशागभ
वग्गहणाई तिसमयऊणाई उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमन्भहियाई, देसबंधतरं जहन्नेणं ४खुट्टागं भवग्गहणं समयाहियं उफोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजचासमभहियाई, जीवस्स णं भंते ।। ला पुढविकाइयत्ते नोपुढचिकाइयत्ते पुणरवि पुढविकाइयत्ते पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरप्पयोगधंतरं ||॥१९॥ कालओ केवचिरं होइ, गोयमा! सवयंघंतरं जहन्नेणं दो खुडाई भवग्गहणाई तिसमयऊणाई उकोसेणं अणतं कालं अणता उस्सप्पिणीओसप्पिणीमो कालो खेत्तओ अर्णता लोगा असंजा पोग्गलपरियहा ||४||
दीप अनुक्रम [४२४]
RSESC5555%A5%258
अत्र मूल-संपादने सूत्र-क्रमांके सू. ३४८ किम लिखितं तत् अहम् न जानामि!![यहाँ सूत्र ३४७ चल रहा है, प्रतमे इस सूत्र के बिचमे कोई क्रमांक नहीं बदला, पूज्यपाद सागरानंदसूरीश्वरजी संपादित 'आगममञ्जूषा' में भी यह सूत्र सळंग ही संपादित हुआ है, फिर भी यहाँ दो पृष्ठ तक सू.३४७ लिखा है और बादमे सू.३४८ लिख दिया है, जो की इस प्रत के पृष्ठ ४०७ तक चलता है, बादमे नया सूत्र क्रम ३४९ लिखा है ]
~236~