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आगम
[०५]
प्रत
सूत्रांक [ ३४०
-३४१]
दीप
अनुक्रम
[४१३
४१४]
[भाग-९] “भगवती” - अंगसूत्र - ५ [ मूलं + वृत्ति:]
शतक [८], वर्ग [-], अंतर- शतक [-] उद्देशक [८], मूलं [ ३४०-३४१]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १
॥२८७॥
तदसम्भवादिति 'त' मित्यादि, 'तत्' ऐयपथिकं कर्म 'देसेणं देस'ति 'देशेन' जीवदेशेन 'देश' कर्म्मदेशं बनातीत्यादि चतुर्भङ्गी, तत्र च देशेन कर्म्मणो देशः सर्वं वा कर्म्म सर्वात्मना वा कर्म्मणो देशो न बध्यते, किं तर्हि ?, सर्वात्मना सर्वमेव बध्यते, तथास्वभावत्वाज्जीवस्येति ॥ अथ साम्परायिकबन्धनिरूपणायाह
संपरायणं भंते! कम्मं किं नेरइयो बंधइ तिरिक्खजोणीओ बंधइ जाव देवी बंधइ ?, गोयमा ! नेरइओवि बंधइ तिरिक्खजोणीओवि बंधइ तिरिक्खजोणिणीचि बंधइ मणुस्सोवि बंधइ मणुस्सीवि बंधr देवोवि बंधइ देवीवि बंधइ ॥ तं भंते ! किं इत्थी बंधइ पुरिसो बं० तहेव जाब नोइत्थीनोपुरिसोनोनपुंसओ बंधइ ?, गोयमा ! इत्थीवि वं० पुरिसोवि बंधइ जाव नपुंसगोवि बंधइ अहवेए य अवगयवेदो व बंधइ अहवे य | अवगद्यवेया य बंधइ । जह भंते । अवगयवदो य बंध अवगयवेदा य बंधन्ति तं भंते । किं इत्थीपच्छाको बंधह पुरिसपच्छाकडो बंधड़ ? एवं जहेब ईरियावहियाबंधगस्स तहेब निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य [ बंधइ ] नपुंसगपच्छाकडा य बंधंति ॥ तं भंते! किं बंधी बंध बंधिस्स १ बंधी बंधर न बंधिस्सइ २ बंधी न बंध बंधिस्स ३ बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ४१, गोयमा ! अथेगतिए बंधी गंध बंधिस्सर १ अत्थेगतिए बंधी बंधह न बंधिस्सइ २ अत्थेगतिए बंधी न बंधह बंधिस्सर ३ अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सह । तं भंते । किं साइयं सपज्जवसियं बंध ? पुच्छा तहेव, गोयमा ! साइयं वा | सपज्जवसियं बंधइ अणाइयं वा सपज्जवसियं बंध अणाइयं वा अपज्जवसियं बंधह णो चेव णं साइयं अप
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अत्र मूल - संपादने सूत्र - क्रमांकने एका स्खलना जाता, सू. ३४२ स्थाने सू. ३४३ लिखितं
बन्धः एवं बन्धस्य भेदा:
~216~
८ शतके उद्देशः ८ सांपरायि
क बन्धः
सू २४३
॥३८७ ॥
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