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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [३२८] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
सामायिक
प्रत सूत्रांक
HAPANE
[३२८]
दीप अनुक्रम [४०१]
व्याख्या- सर्य भंड अणुगषेसह परायगं भंड अणुगवेसह, गोयमा ! सयं भंड अणुगवेसति नो परायगं भंडं अणुग- शतक
प्रज्ञप्तिः वेसेह, तस्स णं भंते ! तेहिं सीलषयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवति', हंता अभयदवा-|| भवति ॥ से केणं खाइ णं अद्वेणं भंते ! एवं बुचइ सयं भंडं अणुगवेसइ नो परायगं भंड अणुगवेसह या वृत्तिः
वतो भागोयमा तस्स णं एवं भवति-णो मे हिरने नो मे सुबन्ने नो मे कंसे नो मे दूसे नो मे विउलधणकणगरयण-14
ण्डादि ॥३६॥ मणिमोसियसंखसिलपवालरत्सरयणमादीए संतसारसावदेने, ममत्तभावे पुण से अपरिणाए भवति, से सू ३२८
तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुचइ-सयं भंड अणुगवेसइ नो परायगं भंडं अणुगवेसह ॥ समणोवासगस्स णं भंते ।। सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केनि जायं चरेजा से णं भंते ! किं जायं चरइ अजायं चरह, | गोयमा ! जायं चरइ नो अजायं चरइ, तस्स णं भंते ! तेहिं सीलवयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहि सा जाया अजाया भवइ, हंता भवइ, से केणं खाइणं अटेणं भंते. एवं बुचह-जायं चरइ नो अजायं ।। चरह, गोयमा! तस्स णं एवं भवइ-णो मे माता णो मे पिता णो मे भाया णो मे भगिणी णो मे भज्जा | णो मे पुत्ता णो मे धूया नो मे सुण्हा, पेजबंधणे पुण से अवोच्छिन्ने भवइ, से तेण?णं गोयमा ! जाव नो
॥३६७॥ | अजायं चरइ ॥ (सूत्रं ३२८)॥
'रायगिहें'इत्यादि, गौतमो भगवन्तमेवमवादीत-'आजीविका' गोशालकशिष्या भदन्त ! 'स्थविरान्' निर्मन्धान | भगवतः 'एवं' वक्ष्यमाणप्रकारमवादिषुः, यच्च ते तान् प्रत्यवादिषुस्तद्गौतमः स्वयमेव पृच्छमाह-'समणोवासगस्स
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