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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती"-अंगस शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३], मूलं [३२५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३२५] दीप अनुक्रम [३९८] व्याख्या वत्ति आमृशन् ईषत् स्पृशनित्यर्थः 'संमुसमाणे यत्ति संमृशन् सामस्त्येन स्पृशनित्यर्थः 'आलिहमाणे वत्ति आलि-|| प्रज्ञप्तिः खन ईषत् सकृद्वाऽऽकर्षन् 'विलिहमाणे वत्ति विलिखन् नितरामनेकशी वा कर्षन 'आदिभाणे वत्ति ईषत् सकृद्धा उद्देशः३ प्रदेशानाम अभयदेवी-छिन्दन् 'विच्छिदमाणे वत्ति नितरामसकृद्धा छिन्दन् 'समोडहमाणे'त्ति समुपदहन 'आवाहं वत्ति ईषद्बाधां या वृत्तिः स्तरावेद'वायाहं वत्ति व्यावाघां-प्रकृष्टपीडाम् ।। कूर्मादिजीवाधिकारात्तदुत्पत्तिक्षेत्रस्य रलप्रभादेश्चरमाचरमविभागदर्शनायाह- नाया ॥३६५| __ कति णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ?, गोषमा | अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रयणप्पभा जाव अहे | अभाव ३२५ सत्तमा पुढवि ईसिपम्भारा ।इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढची किं चरिमा अचरिमा ?, चरिमपदं निरवसेसं |चरमादिः भाणिय जाव वेमाणिया णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ?, गोयमा! चरिमावि अचरिमावि। सू ३२६ सेवं भंते !२ भग० गो ॥ (सूत्रं ३२६)॥८-३ ॥ 'कइ ण'मित्यादि, तत्र 'इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं चरिमा अचरिमा?' इति, अथ केयं चरमाचरमIX परिभाषा इति, अत्रोच्यते, चरमं नाम प्रान्तं पर्यन्तवर्ति, आपेक्षिकं च चरमत्व, यदुक्तम्-"अन्यद्रव्यापेक्षयेदं चरम ||४/ IMI द्रव्यमिति, यथा पूर्वशरीरापेक्षया चरमं शरीर"मिति, तथा अचरम नाम अप्रान्त मध्यवर्ति, आपेक्षिकं चाचरमत्वं, | ॥३६५।। यदुक्तम्-"अन्यद्रव्यापेक्षयेदमचरम द्रव्य, यथाऽन्त्यशरीरापेक्षया मध्यशरीर"मिति इह स्थाने प्रज्ञापनादशमं पदं वाच्यं, II ४ एतदेवाह-चरिमें'त्यादि, तत्र पदद्वयं दर्शितमेव, शेषं तु दश्यते-चरिमाई अचरिमाई चरिमंतपएसा अचरिमंतपएसा ?, ~172
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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