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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [१६], पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत -% सत्राक [१६] व्याख्या-13 संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-संजया य असंजया य, तत्थ णे जेते संजया ते दुविहा१शतके प्रज्ञप्तिःलापण्णत्ता, तंजहा-पमत्तसंजया य अप्पमत्तसंजया य, तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजया ते शं नो आयारंभाल आत्मारअभयदेवीसानो परारंभा जाव अणारंभा, तत्थ क जे ते पमत्तसंजया ते सुहं जोगं पडच नो आयारंभा नो परारंभा । म्भा सू१९ या वृत्तिः ||जाच अणारंभा, असुभ जोगं पडुच्च आयारंभावि जाव नो अणारंभा, तत्थ ण जे ते असंजया ते अविरतिं| पडच आयारंभावि जाव नो अणारंभा, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चइ-अस्थगइया जीवा जाव अणारंभा | नेरल्याणं भंते ! किं आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारंभा,गोयमा ! नेरइया आयारंभावि जाव नो | अणारंभा, से केणद्वेणं भन्ते एवं बुच्चा , गोयमा ! अविरतिं पहुच, से तेणटेणं जाव नो अणारंभा, एवं जाव असुरकुमाराणवि जाच पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, मणुस्सा जहा जीवा, नवरं सिद्धविरहिया भाणियव्वा, चाणमंतरा जाव वेमाणिया जहा नेरइया । सलेस्सा जहा ओहिया, कण्हलेसस्स नीललेसस्स काउ| लेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं पमत्तअप्पमत्ता न भाणियच्या, तेउलेसस्स पम्हलेसस्स सुकलेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं सिद्धा न भाणियया ॥ (सू०१६) आरम्भो-जीवोपघाता, उपद्रवणमित्यर्थः, सामान्येन वाऽऽश्रवद्वारप्रवृत्तिः, तत्र चात्मानमारभन्ते आरमना वा|| स्वयमारभन्त इत्यात्मारम्भाः , तथा परमारभन्ते परेण वाऽऽरम्भयतीति परारम्भाः , तदुभयम्-आत्मपररूपं, तदुभयेन | वाऽऽरम्भन्त इति तदुभयारम्भाः, आत्मपरोभयारम्भवार्जितास्त्वनारम्भा इति प्रश्ना, अनोत्तरं स्फुटमेव, नवरम् दीप अनुक्रम X ॥३१॥ [२२] - -- - ~76~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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