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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [२४७ -२४८] + गाथा: दीप अनुक्रम [ ३०३ -३१२] [भाग- ८] “भगवती”- अंगसूत्र - ५/१ (मूलं + वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-], अंतर् शतक [ - ], उद्देशक [७], मूलं [ २४७ - २४८ ] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [०५], अंगसूत्र- [ ०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः Jan Education) |यसमितिसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो संखेजा आवलिया नि| स्सासो- हट्ठस्स अणबगलस्स, निरुवकिस्स जंतुणो । एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुक्ति बुच्चति ॥ १ ॥ सन्त पाणि से धोवे, सत्त थोचाई से लवे। लवाणं सत्तह्त्तरिए, एस मुहुत्ते विधाहिए ॥ २ ॥ तिन्नि सहस्सा सप्त व सयाई तेवतरं व ऊसासा। एस मुहतो दिट्ठो सबेहिं अनंतनाणीहिं ॥ ३ ॥ एषणं मुत्तपमाणेणं तीसमुहत्तो अहोरतो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो दो पक्खा मासे दो मासा उऊ तिन्नि उउए अयणे दो अपणे संवच्छरे पंचवच्छरिए जुगे वीसं जुगाई वाससयं दस वाससयाई वाससहस्सं सयं वाससहस्साई | वाससयसहस्सं चउरासीति वासस्यसहस्साणि से एगे पुगे चउरासीती पुवंगसय सहस्साई से एगे पुवे, [ एवं पूब्वे ] २ तुडिए २ अडडे २ अववे २ हुए २ उप्पले २ पउमे २ नलिणे २ अच्छणिउरे २ अए २ पउ य २ नए य २ चूलिया २ सीसपहेलिया २ एताव ताव गणिए एताव ताव गणियस्स विसए, तेण परं ? ओ मिए । से कि तं ओमिए?, २ दुविहे पण्णत्ते तंजहा पलिओवमे य सागरोवमे य, से किं तं पलि ओवमे ? से किं तं सागरोवमे ? | सत्थेण सुतिक्खेणचि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सका । तं परमाणु सिद्धा वयंति आदि पमाणानं ॥ १ ॥ अनंताणं परमाणुषोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा उस्सण्हसहियाति वा सण्हसहियाति वा उद्धरेणूति वा तसरेणूति वा रहरेणूति वा वालग्गेइ वा लिक्खाति वा ज्याति वा जवमज्झेति वा अंगुलेति वा, अङ्क उस्सण्हसहियाओ सा एगा सहसहिया अट्ठ सहसहियाओ काळ-स्वरूपं एवं समु-गणितं For Parts Only ~ 562~ janrary or
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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