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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [२२९] + गाथा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
Hशतके
प्रत सूत्रांक [२२९]
गाथा
व्याख्या- सम, से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ जे महावेदणे जाव पसत्थनिजराए ?, गोयमा! से जहानामए-दुबे वत्था | प्रज्ञप्तिः४/सिया, एगे वत्थे कदमरागरते एगे वत्थे खंजणरागरत्ते, एएसि णं गोयमा ! दोहं वत्थाणं कयरे वत्थे | उद्देशः १ अभयदेवी- धोपतराए व दुवामतराए चेव दुपरिकम्मतराए चेव कयरे वा वत्धे सुधोयतराए चेव सुवामतराए चेव | 8/
वस्त्रदृष्टाया वृत्तिः सपरिकम्मतराए चेव , जे वा से वत्थे कद्दमरागरते जे वा से वस्थे खंजणरागरत्ते, भगवंतस्थ गं जेल
शान्तेन महा
वेदनाल्प॥२५॥ से वस्थे कदमरागरते से णं वत्थे दुधोयतराए चेव दुवामतराए चेव दुप्परिकम्मतराए चेव, एवामेव गोयमा ! ||2
निर्जरे नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई चिक्कणीकयाई(अ)सिढिलीकयाई खिलीभूयाई भवंति संपगादपि य णं २२९
ते वेदणं वेदेमाणा णो महानिज्जरा णो महापज्जवसाणा भवंति से जहा वा केइ पुरिसे अहिगरणं आकोडे-18| ||माणे महया २ सदेणं महया २ घोसेणं महया २ परंपराधाएणं णो संचाएइ तीसे अहिगरणीए कई अहाबायरे पोग्गले परिसाडित्तए एवामेव गोयमा । नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई जाव नो महापज्ज-18/
वसाणाहं भवंति, भगवं! तत्थ जे से वत्थे.खंजणरागरत्ते से णं वत्थे सुधोयतराए चेव सुवामतराए चेव |सुपरिकम्मतराए पेच, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंधाणं अहापायराई कम्माई सिढिलीकयाई निहि-॥ दियाई कम्माई विप्परिणामियाई खिप्पामेव विद्धधाई भवंति,जावतियं तावतियंपिणं ते वेदणं वेदेमाणे महा-18| ॥२५॥
निजरा महापजवसाणा भवंति, से जहानामए के पुरिसे सकतणहस्वयं जायतेयंसि पक्खिवेखा से नूर्ण गोयमा ! से सुफे तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्तेसमाणे खिप्पामेव मसमसाविजति?, हंता मसमसाविजति,
दीप अनुक्रम [२७२-२७३]
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