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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [२२६-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२२६-२२७] संतिया, सेनूर्ण भंते अजो पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं सासए लोए बुइए अणादीए अणवदग्गे परित्ते परिवडे हेडा पिच्छिपणे मझे संखिसे उपि बिसाले अहे पलियंकसंठिए मजो बरबहरविग्गहिते पप्पि उद्धमुह-1 गाकारसंठिए तेसिं च णं सासयंसि लोगंसि अणादियंसि अणवदग्गंसि परिसंसि परिवुडंसि हेट्ठा विच्छिन्नंसि | जो संखिसि उपि विसालसि अहे पलियंकसंठियंसि मजो वरवहरविग्गहियंसि उपि उद्धमहंगाका-18 रसंठियसि अर्णता जीवघणा उप्पज्जित्सा २ निलीयंति परित्सा जीवघणा उप्पग्जिसा २ निलीयंति से नूर्ण भूए उप्पन्ने विगए परिणए अजीवहिं लोकति पलोकद, जे लोकह से लोए , हंसा भगवं [ते]1 से तेणट्टेणं अज्जो! एवं वुचइ असंखेने तं चेव । सप्पभिर्ति च णं ते पासावञ्चेजा थेरा भगवंतो समर्ण भगवं महावीरं पञ्चभिजाणंति सवन्नू सचदरिसी [अं० ३००० ], तए णं ते थेरा भगवंतो समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति २ एवं वदासिनकछामि णं भंते ! तुम्भं अंतिए चाउचामाओ धम्माओ पंचमहबइयं सप्परिकमणं धम्म उवसंपलिसा णं विहरिसए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह, तए णं ते पासावचिजाधेरा भगवंतो जाव चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिद्धा जाव सबदुक्खप्पहीणा अत्धेगतिया देवा देवलोएसु उववन्ना ॥ (सूत्र २२६)॥ कतिविहा णं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता ?, गोयमा ! चविहा देवलोगा पण्णत्ता, तंजहा|भवणवासीवाणमंतरजोतिसियवेमाणियभेदेण, भवणघासी दसविहा वाणमंतरा अट्टविहा जोइसिया पंच|विहा वेमाणिया दुविहा । गाहा-किमियं रायगिहंति य उज्जोए अंधयार समए य। पासंतिवासि पुछा राति-| दीप ॐॐॐॐॐॐ**55 अनुक्रम [२६७-२७०] ~508~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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