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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [२२२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२२२]
दीप
व्याख्या- अडतालीसं मुहुत्ता'सकर चोद्दस रातिदियाणं वालु मासं पंक० दो मासा धूम चत्तारि मासा तमाए अट्ट ५ शतके प्रज्ञप्तिः मासा'तम तमाए वारस मासा । असुरकुमारावि वहुंति हायंति जहा नेरइया, अवडिया जह० एक समपं उको उद्देशः ८. अभयदेवी-|
अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, एवं दसविहावि, एगिंदिया चहुंतिवि हायंतिवि अवद्विपावि, एएहिं तिहिवि जहनेणं एकंजीवादीनां या वृत्तिः१
समयं उक्को आवलियाए असंखेजतिभागं, पेइंदिया वहुंति हायति तहेब, अवडिया ज. एक समयं उको वृद्धिहा१२४४॥ दो अंतोमुटुत्ता, एवं जाव चरिंदिया, अवसेसा सवे वहृति हायंति तहेव, अवट्ठियाणं णाणत्तं इम, तं०-
पचयादिच | संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्वजोणियाणं दो अंतोमुहुत्ता, गब्भवतियाणं चउच्चीसं मुहुत्ता, संमुच्छिमम-13/
सू २२२ || गुस्साणं अट्टचत्तालीसं मुहुन्सा, गम्भवतियमणुस्साणं चउच्चीसं मुहुत्ता, वाणमंतरजोतिससोहम्मीसा
णेसु अट्ठचत्तालीसं मुष्टुत्ता, सर्णकुमारे अट्ठारस रातिदियाई चत्तालीस यमुहु०, माहिदे चउवीसं रातिंदियाई बीस य मु०, बंभलोए पंचचत्तालीसंरातिदियाई, लंतए नउति रातिदियाई, महामुके सहिरातिंदियसतं, || सहस्सारे दो रातिदियसयाई, आणयपाणयाणं संखेवा मासा, आरणचुयाणं संखेज्जाई वासाई, एवं गेवेजदेवाणं विजयवेजयंतजयंतअपराजियाणं असंखिजाई बाससहस्साई, सबद्दसिद्धे य पलिओवमस्स असंखेजतिभागो, एवं भाणियचं, वहुंति हापंति जह. एक समयंउ० आवलियाए असंखेजतिभागं, अवट्ठियाणं जं भणियं। 8 ॥२४४॥ सिद्धा णं भंते ! केवतियं कालं वटुंति ?, गोयमा ! जह० एकं समयं उको अट्ठ समया, केवतियं कालं अवभट्ठिया?, गोयमा ! जह• एकसमयं उक्कोछम्मासा ॥ जीवा णं भंते ! किं सोवचया सावचया सोवचय
अनुक्रम [२६३]
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