SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [२२१] दीप अनुक्रम [२६२] [भाग- ८] “भगवती”- अंगसूत्र - ५ / १ (मूलं + वृत्ति:) शतक [५], वर्ग [–], अंतर् शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [ २२१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र- [ ०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १ ॥ २४०॥ अपएसे, जति णं अजो ! खेत्तादेसेणवि सव्यपोग्गला सअ० ३ जाब एवं ते एगवएसोगादेवि पोग्गले सअहे समज्झे सपएसे, जति णं अज्जो ! कालादेसेणं सब्बयोग्गला सअडा० समज्झा सपएसा एवं ते एगसमपठितीएवि पोग्गले ३ तं चेच, जति णं अजो ! भावादेसेणं सव्यपोग्गला सअड्डा समज्झा सपएसा ३, एवं ते एगगुणकालएव पोग्गले सभ० ३ तं चैव, अह ते एवं न भवति तो जं वयसि दव्वादेसेणवि सव्वपोग्गला सभ० ३ नो अणहा अमज्झा अपदेसा एवं खेसादेसेणवि काला० भावादेसेणवि तनं मिच्छा, तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठीपुत्तं अ० एवं वयासी-नो खलु वयं देवा० एयमहं जाणामो पासामो, जति णं देवा० नो गिलायंति परिकहित्तए तं इच्छामि णं देवा० अंतिए एयमहं सोचा निसम्म जाणित्तए, तए णं से नियंठीपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी दव्वादेसेणवि मे अज्जो सब्बे पोग्गला सपदेसावि अपदेसावि अनंता खेत्तादेसेणवि एवं चेव कालादेसेणवि भावादेसेणवि एवं चेव ॥ जे दव्वओ अप्पदेसे से खेसओ नियमा अन्पदेसे कालओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे भावओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे । जे स्वेतओ अप्पदेसे से दव्वओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे कालओ भयणाए भावओ भय| जाए। जहा खेत्तओ एवं कालओ भावओ ॥ जे दब्बओ सपदेसे से खेत्तओ सिय सपदेसे सिप अपदेसे, | एवं कालओ भावओषि, जे खेत्तओ सपदेसे से दव्यतो नियमा सपदेसे कालओ भगणाए भावओ भयणाए जहा दव्वओ तहा कालओ भावओवि ॥ एएसि णं भंते! पोग्गलाणं दब्वादेसेणं खेत्ता देसेणं काला Educaton Internationa नारदपुत्र अनगारस्य पुद्गलसंबंधी प्रश्न: For Pale Only ~ 493~ ५ शतके उद्देशः ८ पुद्गलानां सार्धादि सू २२० ॥२४० ॥
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy