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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२१३-२१४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
परमाणुपागल
प्रत सूत्रांक [२१३-२१४]
दीप
व्याख्या-8
परमाणुपोग्गले णं भंते ! एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति ?, गोयमा ! सिय एयति वेयति जाव प्रज्ञप्तिः परिणमति सिय णो एयति जाव णो परिणमति । दुपदेसिए णं भंते ! खंधे एयति जाव परिणमइ ?, गोयमा उद्देशात अभयदेवी
सिय एयति जाव परिणमति सिय णो एयति जाव णो परिणमति, सिय देसे एयति देसे नो एयति । परमाण्वादेया वृत्तिः१ मा
तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयति?, गोयमा ! सिय एयति सिय नो एयति, सिय देसे एयति नो देसोरजनादिअ॥२३२॥ एयति सिय देसे एयति नो देसा एयंति सिय देसा एयंति नो देसे एयति । चउप्पएसिए णं भंते ! वंधे
|| सिधाराद्यण्यति०१. गोयमा ! सिय एयति सिय नो एयति सिय देसे एयति णो देसे एयति सिय देसे एयति णो|
वगाहनादि
१३. है देसा एयति सिय देसा एयंति नो देसे एयति सिय देसा एयंति नो देसा एयंति जहा चउप्पदेसिओ, २१४
तहा पंचपदेसिओ तहा जाब अणतपदेसिओ ॥ (सूत्रं २१३) ॥ परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुर
धारं वा ओगाहेज्जा ?, हंता ! ओगाहेजा । से णं भंते ! तत्थ छिजेज वा भिजेज वा ?, गोयमा ! णो तिणढे ||६|| | समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कमति, एवं जाव असंखेजपएसिओ। अणंतपदेसिए णं भंते ! खंधे असिधारं था | ल खुरधारं वा ओगाहेजा ?, हंता ! ओगाहेजा, से णं तत्थ छिज्जेज वा भिजेज वा', गोयमा ! अस्धेगतिए
छिज्जेज्ज वा भिज्बेन वा अत्थेगतिए नो छिज्जेज वा नो भिजेज वा, एवं अगणिकायस्स मझमज्झेणं तहिं णवरं | || झियाएजा भाणितचं, एवं पुक्खलसंवदृगस्स महामेहस्स मझमझेणं तहिं उल्ले सिया, एवं गंगाए महा
| ॥२३॥
अनुक्रम [२५३-२५४]
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