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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: * % % प्रत सूत्रांक [२०४] % - दीप |च विवक्षया दीर्घमेवायुः ॥ विपर्ययसूत्र प्रागिव, नवरं इहापि प्रासुकापासुकतया दानं न विशेषितं, पूर्वसूत्रविपर्ययत्वाद् अस्य, पूर्वसूत्रस्य चाविशेषणतया प्रवृत्तत्वात् , न च प्रासुकाप्रासुकदानयोः फलं प्रति न विशेषोऽस्ति, पूर्वसूत्रयोस्तस्य प्रतिपादितत्वात्, तस्मादिह प्रासुकैषणीयस्य दानस्य कल्प्याप्राप्तावितरस्य चेदं फलमवसेयं, वाचनान्तरे तु 'फासुएण'मित्यादि दृश्यत एवेति, इह च प्रथममल्पायुःसूत्रं द्वितीयं तद्विपक्षस्तृतीयमशुभदीर्घायुःसूत्रं चतुर्थ तु तद्विपक्ष इति ॥ &अनन्तरं कर्मवन्धक्रियोक्का, अथ क्रियान्तराणां विषयनिरूपणायाह| गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा ? तस्स णं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ परिग्गहिया०माया० अप० मिच्छा०, गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जा परिमाया. अपच० मिच्छादसणकिरिया सिय कन्जइ सिय नो कजह ॥ अह से भंडे अभिसमन्नागए भवति, तओ से पच्छा सब्बाओ ताओ पपणुईभवति ॥ गाहावतिस्स गं भंते ! तंभर विकिणमाणस्स। ४|| कतिए भंडे सातिजेजा ?, भंडे य से अणुवणीए सिया, गाहावतिरस ण भंते। ताओ भंडाओ किं आरंभिया|| किरिया कज जाव मिच्छादसणकिरिया कजइ ? कइयरस वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजह जाव मिच्छादसणकिरिया कज्जह ?, गोयमा गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कन्जह जाव अपडबवाणिया मिच्छादसणवतिया किरिया सिय कमाइ सिय नो कज्जइ, कतियस्स णं तामो सव्वाओ पयणुई भवति।गाहावतिस्स णं भंते ! भंड विकिणमाणस्स जाच भंडे से उवणीए सिया? कतियस्सणं भंते ! ताओ अनुक्रम [२४४] RRC अल्प-दीर्घ-शुभ आयु: ~468~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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