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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [१९२-१९७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१९२ CCCCCCCX -१९७] तंजहा-माइमिच्छादिहिउववनगा य अमाइसम्मदिहिउववन्नया य, तस्थ णजे ते माइमिच्छाविट्ठीउववनगा ते न याति न पासंति, तत्थ ण जे ते अमाईसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति पासंति, से केणढणं एवं बु. अमाईसम्मदिट्ठी जाव पा०?, गोयमा ! अमाई सम्मदिही दुविहा पण्णत्ता-अनंतरोववन्नगा य |परंपरोववन्नगा य, तत्थ अणंतरोववन्नगा न जा० परंपरोववन्नगा जाणंति, से केणद्वेणं भंते ! एवं० परंपरोवव नगा जाव जाणंति ?, गोयमा ! परंपरोववन्नगा दुविहा पण्णत्ता-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, पजत्ता जा०|3|| * अपजत्ता न जा०, एवं अणंतरपरंपरपजत्तअपज्जत्ता य उवउत्ता अणुउवत्ता, तत्थ ण जे ते उपउत्ता तेजा. पा.से तेणढणं तं चेव । (सूत्र १९५) पभू णं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं । | केवलिणा सहिं आलावं वा संलावं वा करेत्तए ?, हंता पभू, से केणडेणं जाव पभू णं अणुत्तरोषवाइया देवा जाव करेत्तए ?, गोयमा ! जपणं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अटुं वा हेर्ड वा पसिणं वा वागरणं वा कारणं वा पुच्छंति तए णं इहगए केवली अटुं वा जाव वागरणं वा वागरेति से तेणढणं । जन्न Dil भंते ! इहगए व केवली अह वा जाव वागरेति तण्णं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा|| जा० पा०, हंता ! जाणंति पासंति, से केणढणं जाव पासंति ?, गोयमा ! तेसिणं देवाणं अणंताओ मणोद| ब्ववग्गणाओ लद्धाओ पसाओ अभिसमन्नागयाओ भवंति से तेणटेणं जपणं इहगए केवली जाव पा०॥ CACANCHA दीप अनुक्रम (२३२ -२३७] ~456~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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