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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३], मूलं [१५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१५३]]
दीप अनुक्रम [१८१]
मियं जाच नो परिणमति । जावं च णं भंते ! से जीये नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति ताचं च | तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवह ? हंता ! जाच भवति । सेकेणटेणं भंते! जाव भवति, मंडियपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयति जाव णोपरिणमइ तावं च णं से जीवे नो आरंभइ नोसारंभइ नो समारंभइनो आरंभे वह णो सारंभे वह णो समारंभे वह अणारंभमाणे असारंभमाणे असमारंभमाणे
आरंभे अवहमाणे सारंभे अवद्दमाणे समारंभे अवमाणे बहूर्ण पाणाणं ४ अदुक्खावणयाए जाव अपरिया-द है वणयाए वहाद । से जहानामए केइ पुरिसे सुकं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्विवेजा, से नूर्ण मंडियपुत्ता ! से
सुके तणहत्थए जायतेयंसि पक्वित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविजह ? हंता ! मसमसाविजइ, से जहानामए-के पुरिसे तत्संसि अयकवल्लंसि उदयविंदू पक्खिवेला, से नूर्ण मंडियपुत्ता ! से उदयविंदू तत्तंसिर अयकवल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धंसमागच्छद ?, हता! विहंसमागच्छद, से जहानामए हरए| सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलहमाणे वोसट्टमाणे समभरघडताए चिट्ठति ?, हंता चिट्ठति, अहे णं केह पुरिसे
तंसि हरयंसि एगं महं णावं सतासवं सच्छिदं ओगाहेजा से नूर्ण मंडियपुत्ता ! सा नाया तेहिं आसव&|| दारेहिं आपूरेमाणी २ पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलहमाणा वोसहमाणा समभरघडत्साए चिट्ठति ! हता! चिट्ठति, अहे णे केह पुरिसे तीसे नावाए सब्बतो समंता आसवदाराई पिहेइ २ नास्सिंचणएणं उदयं| उस्सिचिज्जा से नूर्ण मंडियपुसा ! सा नाथा तंसि उदयंसि उस्सिचिजंसि समाणसि खिप्पामेव उहुं उदाह?,
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मंडितपुत्रस्य प्रश्न:
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