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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [१३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१३०] दीप अनुक्रम [१५६] जारिसिया णं (सकेणं देविंदेणं देवरपणा दिब्बा देविट्ठी जाव अभिसमण्णागया तारिसिया णं) देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया। से णं भंते! तीसए देवे केमहिड्डीए जाव केवतियं च णं पभू | विउवित्तए ?, गोयमा ! महिहीए जाव महाणुभागे, से गं तत्थ सयस्स विमाणस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तहं अणियाणं सत्तहं अणियाहिवईणं सोलसहं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अपणेसिं च बहुणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य जाब विहरति, एवंमहिडीए जाव एवइयं च णं पभू विउम्बित्तए, से जहाणामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा जहेव सफरस तहेव जाव एस णं गोयमा ! तीसयरस देवस्स अयमेयारूचे विसए विसयमेत्ते बहए नो चेव णं संप-18 तीए विउब्बिसु वा ३ । जति णं भंते ! तीसए देवे महिड्डीए जाब एवइयं च णं पभू विउम्वित्तए सकस्स ण भंते ! देविंदस्स देवरन्नो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिडीया तहेव सवं जाव एस गं गोयमा! सकस्स देविंदस्स देवरनो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयारूवे विसयमेसे बुइए नो चेव ण संपत्तीए विउब्बिसु वा विउविति वा विउविस्संति वा तायत्तीसा य लोगपालअग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स नवरं दो केवलकप्पे जंबूहीवे २ अण्णं तं पणेव, सेवं भंते २ त्ति दोचे गोयमे जाव विहरति ॥ (सू०१३०)॥ _ 'एवं खलु'इत्यादि, 'एवम्' इति वक्ष्यमाणन्यायेन सामानिकदेवतयोत्पन्न इति योगः, 'तीसए'त्ति तिष्यकाभिधानः सयंसि'त्ति स्वके विमाने, 'पंचविहाए पजत्तीपत्ति पर्याप्तिः--आहारशरीरादीनामभिनिर्वृत्तिः, सा चान्यत्र पोढोक्ता, ~330~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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