SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [१००] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१००] एगेवि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेव, तंजहा-इत्थिवेदं पुरिसवेदं च, एवं परउत्थियवसम्बया | नेपब्वा जाव इस्थिवेदं च पुरिसवेदं च । से कहमेयं भंते ! एवं , गोयमा ! जपणं ते अन्नउस्थिया एवमाइ खंति जाव इस्थिवेदं च पुरिसवेदं च, जे ते एवमासु मिच्छं ते एचमाहंसु, अहं पुण गोपमा! एवमातिक्खामि भा०प० परू०-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवन्ति महिडिएसु जाव महाणुभागेसु दूरगतीसु चिरहितीएसु, से णं तत्थ देवे भवति महिहीए जाव दस दिसामाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे जाच पडिरूवे । से णं तस्थ अन्ने देवे अन्नेसिं देवाणं देवीओ अभिजंजिय २|| परिपारेर १ अप्पणचियाओ देवीओ अभिजुजिय २ परियारेइ २ नो अप्पणामेव अप्पाणं विउम्चिय २|3 परियारेद ३, एगेविय णं जीवे एगेणं समएणं एर्ग वेदं वेदेह, तंजहा-इत्थिवेदं वा पुरिसवेदं वा, जं समय इत्थिवेदं वेदेह णो तं समयं पुरुसवेयं वेएइ जं समयं पुरिसवेयं वेएइ नो तं समयं हथिवेयं वेदेइ, इथिवेयस्स उदएणं नो पुरिसवेदं वेएइ, पुरिसवेयस्स उदएणं नो इत्थिवेयं वेएइ, एवं खलु एंगे जीवे एगेणं समएणं एगं| वेदं वेदेइ, तंजहा-इत्थीवेयं वा पुरिसवेयं वा, इत्थी इस्थिवेएणं उदिन्नेणं पुरिसं पत्थेइ, पुरिसो पुरिसवेएणं उदिन्नेणं इल्यि पत्थेइ, दोवि ते अन्नमन्नं पत्थंति, तंजहा-इस्थी वा पुरिसं पुरिसे वा इस्थि ॥ (सू०१००)॥ | 'देवभूएण'ति देवभूतेनात्मना करणभूतेन नो परिचारयतीति योगः, 'से णति असौ निम्रन्थदेवः 'तत्र' देवलोके | 'नो' नैव 'अण्णे'त्ति 'अन्यान् आत्मव्यतिरिक्तान 'देवान्' सुरान १ तथा नो अन्येषां देवानां सम्बन्धिनीदेवीः 'अभि दीप अनुक्रम [१२३] ***** * * For P OW awreturasurary.com ~276~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy