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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [९५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९५-९६]] दीप अनुक्रम [११६-११७] SCRECR49046346456256* जावजीवाए जाव मिच्छादसणसल्ले पञ्चक्खाए जावजीवाए इयाणिपि यणं समणस्स भ०म० अंतिए सव्वं पा णाइवायं पचक्खामिजावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्लं पचक्खामि, एवं सव्वं असणं पाणं खासा चउकाबिहंपि आहारंपचक्खामि जायजीवाए, जंपि य इमं सरीरं इहूँ कंतं पियं जाच फसंतत्तिकह एपंपिणं चरिमेहिं उस्सासनीसासेहि बोसिरामित्तिकटु संलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवखमाणे विहरति।तएणं से खंदए अण समणस्स भ०म०तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमादियाई इकारस अंगाई अहि जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामनपरियार्ग पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते आणुपुब्बीए कालगए (सू०९५)तएणते थेरा भगवंतो खंदयं अण कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति २ पत्तचीवराणि गिण्हंति २ विपुलाओ पब्बयाओ सणियं २ पचोरुहंति २ जेणेव समणे भगवं म० तेणेव उवा० समणं भगवं म. वंदति नमसंति २ एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभदए पगतिविणीए पगतिउवसंते पगतिपयणुकोहमाणमायालोमे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए विणीए, से ण देवाणुप्पिएहिं अब्भणुपणाए समाणे सयमेव पंच महब्बयाणि आरोवित्ता समणे या समणीओ य स्वामेत्ता अम्हहिं सद्धिं विपुलं पब्वयं तं चेव निरवसेसं जाव आणुपुब्बीए कालगए इमे य से आयारभंडए । भंते ति भगवं गोयमे समणं भगवं मकवंदति नमसति २एवं बयासी-एवं खलु देवाणु स्कंदक (खंधक) चरित्र ~268~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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