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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [६४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: E% प्रत सूत्रांक [६४] दीप अनुक्रम [८६] ४ एगंतपंडिए भंते ! मणुस्से किं नेर० पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवलोएमु उवव०, गोयमा ! एगंत पंडिए णं मणुस्से आउयं सिय पकरेइ सिय नो पकरेइ, जह पकरेह नो नेरहया पकरेह नो तिरि०नो मणु०॥४॥ देवाज्यं पकरेइ, नो नेरड्याउयं किच्चा नेर० उव० णो तिरि० णो मणुस्स देवाउयं किच्चा देवेसु उव०, से केणAणं जाव देवाकिच्चा देवेसु उववजद, गोयमा ! एगंतपंडियस्स णं मणुसस्स केवलमेव दो गईओ पन्ना यति. तंजहा-अंतकिरिया चेव कप्पोववत्तिया चेव, से तेणद्वेणं गोयमा! जाव देवाज्यं किचा देवेसु उवव-18|| जइ ॥ बालपंडिएणं भंते ! मणूस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाज्यं किच्चा देवेसु उववजह ?, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववजइ, से केणडेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववजह?, गोयमा ! बालपंडिए णं मणुस्से तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म देसं उवरमइ देसं नो उबरमह देसं पञ्चक्खाइ देसं णो पचक्खाइ, से तेणतुणं देसोवरमदेसपञ्चक्खाणेणं नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ, से तेणडेणं जाव देवेसु उववज्जइ । (सू० ६४) । 'एगंतपंडिए णति एकान्तपण्डितः-साधुः 'मणुस्से'त्ति विशेषणं स्वरूपज्ञापनार्थमेव, अमनुष्यस्यैकान्तपण्डितत्वायोगात् , तदयोगश्च सर्वविरतेरन्यस्याभावादिति, 'एगंतपंडिए णं मणुस्से आउयं सिप पकरेइ सिय नो पकरेइ'त्ति, सम्यक्त्वसप्तके क्षपिते न बनात्यायुः साधुः अवाक पुनर्वधातीत्यत उच्यते-स्यात्प्रकरोतीत्यादि, 'केवलमेव दो गईओ C3454 SARERatun international For P OW ~195
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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