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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२] दीप IIसे णं जीवे धम्मकामए पुषणकामए सग्गकामए मोक्खकामए धम्मकखिए पुषणकंखिए सग्गमोक्खक० धम्म पिवासिए पुण्णसग्गमोक्खपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदझवसिए तत्तिबज्झवसाणे तदट्टोवउत्ते तद्प्पियकरणे तम्भावणाभाविए एयंसिणं अंतरंसि कालं करे० देवलो. उव० से तेणद्वेणं गोयमा । जीवे णं ||8| भंते ! गम्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंवखुजए वा अच्छेज वा चिट्टेज वा निसीएज्ज वा * तुयहेज वा माऊए सुपमाणीए सुबह जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवद दुहियाए दुहिए भवइ, हंता गोयमा! जीवेणं गभगए समाणे जाच दुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकाल समयंसि सीसेण 81 |वा पाएहिं वा आगच्छद सममागच्छद तिरियमागच्छद विणिहायमागच्छद ॥ वणवज्झाणि य से कम्माई पढ़ाई पुट्ठाई निहत्ताई कडाई पट्टवियाई अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं उदिन्नाई नो उवसंताई भवंति तओ भवइ दुरूवे दुब्वन्ने दुग्गंधे दूरसे दुप्फासे अणिट्टे अर्कते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीणस्सरे दीणसरे अणिहस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे असुभस्सरे अमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणाएज वयणे पञ्चायाए यावि ★ भवइ, वनवज्झाणि प से कम्माई नो बढ़ाई पसत्यं नेयव्वं जाव आदेजवयणं पचायाए यायि भवइ, सेवं | भंते ! सेवं भंते ! (सू०६२)त्ति सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ १-७॥ गब्भगए समाणे'त्ति गर्भगतः सन् मृत्वेति शेषः 'एगइए'त्ति सगर्वराजादिगर्भरूपः, सञ्जित्वादिविशेषणानि च & गर्भस्थस्यापि नरकप्रायोग्यकर्मबन्धसम्भवाभिधायकतयोक्तानि, वीर्यलब्ध्या वैक्रिय लब्ध्या संग्रामयतीति योगः, अथवा अनुक्रम [८४] -- JMEnuration: ~191~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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