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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६१] व्याख्या-1 से काले ति यावन्तं कालं 'सेति तत् तस्य वा जीवस्य "भवधारणीय' भवधारणप्रयोजन मनुष्यादिभवोपग्राहकमि-III १शतके प्रज्ञप्तिः । त्यर्थः, 'अब्बावन्नेत्ति अविनष्टम् , 'अहे ण'ति उपचयान्तिमसमयादनन्तरमेतद् अम्बापैतृकं शरीरं 'चोक्कसिबमाणे'त्ति ||5|| अभयदेवी-12 व्यवकृष्यमाणं हीयमानं ।। गर्भाधिकारादेवापरं सूत्रम् गर्भस्य देया वृत्तिः१] वनरकयोजीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे नेरहएसु उववजेजा ?, गोयमा! अत्थेगइए उववजेजा अत्यंगइए नो रुत्पादः ॥८८॥ उववज्जेज्जा, से केणद्वेणं ?, गोयमा ! से णं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहि पजत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलहीए वेउन्वि-|| जातस्या| यलद्धीए पराणीएणं आगयं सोचा निसम्म पएसे निच्छभइ नि०२ वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ समो015 देयतेतरे हार चाउरंगिणि सेन्नं विउठवह चाउरंगिणीसेनं विउब्वेत्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं सर्द्धि संगाम || संगामेइ, से णं जीवे अत्यकामए रजकामए भोगकामए कामकामए अत्यखिए रजकंखिए 'भोगकखिए कामकंखिए अस्थपिवासिए रजपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासिए तचित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झसिए तत्तिब्वजावसाणे तदहोवउत्ते तदप्पियकरणे तन्भावणाभाविए एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज नरइएसु उववजह से तेणतुणं गोयमा ! जाव अत्थेगइए उववजेज्जा अत्थेगहए नो उबवजेजा। जीवे णं भते गम्भ-| गए समाणे देवलोगेसु उववजेजा, गोयमा! अत्धेगहए उपवजेजा अत्थेगइए नो उववजंजा, से कण-| टेण, गोयमा! से ण सन्नी पंचिंदिए सब्वाहिं पज्जत्तीहिं पजत्तए तहारूवरस समणस्स चा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुबयणं सोचा निसम्म तओ भवइ संवेगजायसहे तिव्वधम्माणुरागरत्ते,13 ACCOGOG4 दीप अनुक्रम [८३] 555 ॥८८ arEnata narainraryou ~190~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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