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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [११]. ------------------------------------ मुलं [११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सुत्रांक [११] प्रत एक्कारस उवासगपढिमाओ प० त०-दसणसावए १ कयव्वयकमे २ सामाइअकडे ३ पोसहोववासनिरए ४ दिया भयारी रत्ति परिमाणकडे ५ दिआवि राओवि यंभयारी असिणाई विअडभोई मोलिकडे ६ सचित्तपरिणाए ७ आरंभपरिण्णाए ८ पेसपरिण्णाए ९ उद्दिट्ठभत्तपरिण्णाए १० समणभूए ११ आवि भवइ समणाउसो', लोगंताओ इक्कारसएहिं एक्कारेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसते पण्णत्ते, जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पश्चयस्स एकारसहि एकवीसेहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ, समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एकारस गणहरा होत्था, तं०-दभूई अग्गिभूई वायुभूई विअत्ते सोहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकंपिए अथलभाए मेअजे पभासे, मूले नक्खत्ते एकारसतारे प०, हेडिमगेविजयाणं देवाणं एकारसमुत्तरं गेविजविमाणसतं भवइत्तिमक्खायं, मंदरे णं पच्चए धरणितलाओ सिहरतले एकारसभागपरिहीणे उच्चत्तेणं प०, इमीसे ण रयणपभाए पुढवीए अस्थगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस पलिओवमाई ठिई ५०, पंचमीए पुढवीए अवेगहयाणं नेरइयाणं एकारस सागरोवमाई ठिई प०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कारस पलिओवमाई ठिई प०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एकारस पलिओवमाई ठिई प०, संतए कप्पे अत्यंगइयाणं देवाणं एकारस सागरोवमाई ठिई प०, जे देवा बंभं सुबंभ बंभावत्तं बंभष्पर्भ बंभकतं बंभवणं बंभलेसं बंमज्झयं भसिंगं बंभसिटुं बंभकूडं बंभुत्तरवडिंसगं विमाणं देवचाए उववण्णा तेसिणं देवाणं एकारस सागरोवमाई ठिई प०, ते णं देवा एकारसण्हं अद्धमासाणं आणमैति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा तेसिणं देवाणं एकारसह वाससहस्साणं आहारहे समुष्पजइ, संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे एकारसहिं भवम्गहणेदि सिज्झिस्संति बुझिस्सति मुचिस्संति परिनिवाइस्संति सबदुक्खाणमंतं करिस्वति ॥ सूत्र ११ ॥ अनुक्रम [१९]] ४सा | एते सूत्रे 'क्रिया' आदि पदार्थस्य एकादशविधत्वं उक्तं | (ईसी तरह आगे भी प्रत्येक समवायमें समझ लेना) ~48~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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