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________________ आगम (०४) प्रत सूत्रांक [७] प्रत अनुक्रम [७] समवाय [७], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित. आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] श्रीसमवायांगे [भाग-७] “समवाय” – अंगसूत्र- ४ (मूलं+वृत्ति:) मूलं [७] "समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः श्री अभय ० वृत्तिः ॥ १३ ॥ इति, ऊर्द्धाचत्वेन न तिर्यगुचत्वेनेति 'होत्था' बभूवेति तथा अभिजिदादीनि सप्त नक्षत्राणि पूर्वद्वारिकाणि - पूर्वदिशि येषु गच्छतः शुभं भवति, एवमश्विन्यादीनि दक्षिणद्वारिकाणि पुष्यादीन्यपरद्वारिकाणि खात्यादीन्युत्तरद्वारिकाणीति सिद्धान्तमतमिह तु मतान्तरमाश्रित्य कृत्तिकादीनि सप्त सप्त पूर्वद्वारिकादीनि भणितानि चन्द्रप्रज्ञसौ तु बहुतराणि मतानि दर्शितानीहार्थ इति, स्थितिसूत्रे समादीन्यष्टौ विमाननामानीति ॥ ७ ॥ अट्ठ मयद्वाणा प० ० –जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए, अड पवयणमायाओ प० तं ० - ईरियासमिई मासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणास मिई उच्चारपासवण खेलजलसिंघाणपरिद्वावणियासमिई मणगुत्ती वयगुती कायगुत्ती, वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चतेणं प०, जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, कूडसामली णं गरुलावासे अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ट जोयणाई उद्धं उत्चत्तेणं ५०, अट्ठसामइए के वलिसमुग्धाए १० नं० - पढने समए दंड करेइ बीए समए कवार्ड करेइ तइए समए मंथ करेइ चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ पंचमे समए मंथंतराइ पडिसाहरइ छट्टे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ अट्टमे समए दंड पडिसाहरइ ततो पच्छा सरीरत्थे भवइ, पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ट गणहरा होत्या, तं०-सुभे य सुभघोसे, वसि भयारि य । सोमे सिरिधरे चैव वीरभद्दे जसे इय ॥ १ । अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमदं जोगं जोएंति, तं० कत्तिया १ रोहिणी २ पुणव्वसू ३ महा ४ चित्ता ५ बिसाहा ६ अणुराहा ७ जेट्ठा ८, इमीसे णं रणप्पहाए पुढवीए एते सूत्रे 'क्रिया' आदि पदार्थस्य अष्टविधत्वं उक्तं For Park Use Only ~37~ सप्तमाष्टमो सम० ॥ १३ ॥ aru
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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