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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], --------------- मूलं [१५०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: सूत्रांक [१५०] गाथा: तरविउलगंभीरखायफलिहा अट्टालयचरियदारगोउरकवाडतोरणपडिदुवारेदसभागा जंतमुसलमुसंढिसयग्धिपरिवारिया अउज्ज्ञा अडयालकोहरदया अडयालकयवणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीससरसरत्तचंदणददरदिण्णपंचंगुलितला कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुकडझंतधूवमघमतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधिया गंधवट्टिभूया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सप्पमा समिरीया सउजोआ पासाईया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूवा, एवं जं जस्स कमती तं तस्स जंजं गाहाहिं मणिय तह चेव वण्णओ। केवइया णं भंते ! पुढविकाइयावासा प०१, गोयमा ! असंखेजा पुढवीकाइयावासा प०, एवं जाव मणुस्सत्ति, केवइया णं भंते ! वाणमंतरावासा प०१, गोयमा! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहलस्स उवरि एग जोयणसयं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगे जोयणसयं वजेत्ता मज्झे अहसु जोयणसएसु एत्य णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेना भोमेा नगरावाससयसहस्सा प०, ते णं भोमेजा नगरा बाहिं वटा अंतो चउरंसा, एवं जहाँ भवणवासीणं तहेव णेयव्वा, णवरं पडागमालाउला सुरम्मा पासाईया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूवा ॥ केवइया ण मते! जोइसियाणं विमाणावासा प०१, गोयमा! इमीसे पं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउयाई जोयणसयाई उड्डे उपइत्ता एत्थ णं दसुतरजोयणसयबाहले तिरियं जोइसविसए जोइसियाण देवाणं असंखेजा जोइसियविमाणावासा प०, ते पंजोइसियविमाणावासा अन्भुग्गयमूसियपहसिया विविहरमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्भुयविजयवेजयंतीपडागछत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयणपतरुम्मिलियब्च मणिकणगथूमियागा वियसियसयपत्तपुण्डरीयतिलयरयणद्धचंदचित्ता अंतो याहिं च सहा तवणिज्जवालुआपत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिा ॥ प्रत अनुक्रम [२३८ -२४४] SAHARS ~284 ~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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