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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ------------------------------------ मूलं [१४६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: श्रीसमवा यांग श्रीअभय पूचिः प्रत सूत्रांक | पाकश्रुतं. [१४६]] ॥१२५॥ प्रत अनुक्रम [२२७] CE5CREADCASEOCTORS चेदयाई पणखंडा रावाली ममापियरो समोसरचाई धम्मायरिया धम्मकहाचो इहलोश्यारसोइयाधिषिसेसा मोमपरिचाया आओ सुवपरिरबहा तपोवहामाई परियामा पडिमाबो सलेहमाको भत्तपक्वाथाई पायोषकमबाई देवसवगपणाई सुफुलपचापावा पुणवोहिलाहा अंतफिरियाओ प वाचविखंति, दुहविवागणं पाणाइवायअलिक्वयणछोरिककरणपरदारोदुणससंगवाए महतिवकसाथईदियणमाषपावप्पओवजसुहनक्साणसंचिवार्ष कम्माणं पाक्माण पावअनुभागफलविवामा गिरवमतितिरिक्खजोणिपहुविहवसणसवपरंपरापबशाम मणुबशेषि आगयाणं जहा पाक्कम्मसेसेण पावमा होन्ति फलविवाणा वदवसभविषासनासाकजुटुंगुहुकरचरणनह छेवणजिम्नअणअंजणकडग्पिदाहनयचलनमलपकालबउलंबणसूललयालउद्विभरणतउनीसमतत्ततेलकलकलबहिसिंचणकुंभिषामकपणाविरबंधवाहपशकत्तमपतियवकरकरपालीवणादिदारुणाणि दुस्खाणि अषोक्माणि बहुविविहारंघराणुबद्धा प मुचंति पावकम्मबलीए, अबेयइत्ता हु पत्थि मोक्खो तवेष थिइधणियबद्धकच्छेष साहेणं तस्स बावि हुडा, एखे य सुहविवागेसुणं सीलसंजमणियमगुणतवोवहाणेसु साहूसु सुविहिए अणुकंपासयप्पधोगतिकालमइविसुद्धभत्तपामाई पययमपसा हियसुहनीसेसतिब्वपरिणामनिच्छियमई पयच्छिऊणं पयोगसुद्धाई जह य निवतेंति उ बोहिलाभ जह य परिचीकरेंति नरनरयतिरियसुरगमणविपुलपरियट्टअरतिभयविसायसोगमिच्छत्तसेलसंकडं अन्नाणतमंधकारचिक्खिलसुदुत्तारं जरमरणजोणिसंखुभियचकवालं सोलसकसायसावयपयंडचंड अणाइअं अणवदग्ग संसारसागरमिणं जह व णिबंधति आउन सुरगणेसु जह य अणुभवति सुरगणविमाणसोक्माणि अणोवमाणि ततो य कालंतरे चुआणं इहेव नरलोममागयाणं आउवपुपुण्णरूवजातिकुलजम्मआरोग्गबुद्धिमहाविसेसा मित्तजणसवणवणवण्णविभवसमिद्धसारसमुदयविसेसा बहुविहकामभोगुभवाय सोक्खाप सुहविवागोत्तमेसु, अणु ॥१२५॥ विपाकश्रुत अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, ~261~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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